आरबीआई/2025-26/140
विवि.एसटीआर.आरईसी.45/13.07.010/2025-26
06 अगस्त 2025
भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर-निधि आधारित ऋण सुविधाएँ) निदेश, 2025
अध्याय - I
प्रारंभिक
ए. परिचय
1. गैर-निधि आधारित (एनएफबी) सुविधाएँ जैसे गारंटी, साख पत्र, सह-स्वीकृतियाँ आदि प्रभावी तरीके से ऋण मध्यस्थता और सुचारू व्यावसायिक लेनदेन को सुगम बनाती हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित संस्थाओं में इन सुविधाओं के दिशानिर्देशों को सुसंगत और समेकित करने तथा अवसंरचना वित्तपोषण के लिए वित्तपोषण स्रोतों को व्यापक बनाने हेतु, रिज़र्व बैंक ने 9 अप्रैल, 2025 को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए एनएफबी सुविधाओं पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किए थे। प्राप्त टिप्पणियों का विश्लेषण किया गया है और उन्हें इन निदेशों में उपयुक्त रूप से सम्मिलित किया गया है।
2. बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 के साथ पठित धारा 21 और 35ए, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेए, 45एल और 45एम, तथा राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 30ए, 32 और 33 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक, इस बात से संतुष्ट होकर कि ऐसा करना जनहित और बैंकिंग नीति के हित में आवश्यक और समीचीन है, एतद द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर-निधि आधारित ऋण सुविधाएं) निदेश, 2025 (जिसे आगे 'निदेश' कहा जाएगा) जारी करता है।
बी. प्रयोज्यता
3. ये निदेश निम्नलिखित संस्थाओं पर लागू होंगे, जिन्हें संदर्भ के अनुसार आगे विनियमित संस्था (आरई) और सामूहिक रूप से विनियमित संस्थाएं [आरई (एं)] कहा जाएगा, ऐसी संस्थाओं के सभी गैर-निधि आधारित (एनएफबी) जोखिमों जैसे गारंटी, साख पत्र, सह-स्वीकृति आदि के लिए लागू होंगे, जब तक कि इन निदेशों अथवा रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किसी विनियामक दिशानिर्देश/निदेश के तहत कोई अन्य अनुमति न दी गई हो।
ए. वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और स्थानीय क्षेत्र बैंक सहित);
बी. प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (यूसीबी)/राज्य सहकारी बैंक (एसटीसीबी)/केंद्रीय सहकारी बैंक (सीसीबी);
सी. अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (एआईएफआई);
डी. मध्यम स्तर और उससे ऊपर की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) (आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) सहित) को केवल आंशिक ऋण वृद्धि जारी करने के लिए, जैसा कि इन निर्देशों के अध्याय IV के तहत अनुमत है।
बशर्ते, इन निदेशों के अध्याय II में निर्धारित सामान्य शर्तों के अलावा, ये निदेश किसी विनियमित संस्था के व्युत्पन्न जोखिमों पर लागू नहीं होंगे।
4. ये निदेश 1 अप्रैल, 2026 से, या किसी विनियमित संस्था द्वारा अपनी आंतरिक नीति के अनुसार तय की गई किसी भी पूर्व तिथि से लागू होंगे ("प्रभावी तिथि")। प्रभावी तिथि के बाद किसी भी नई एनएफ़बी सुविधा का विस्तार और किसी मौजूदा एनएफ़बीसुविधा का नवीनीकरण, इन निदेशों के अनुसार शासित होंगे। प्रभावी तिथि तक विस्तारित/ नवीनीकृत सभी मौजूदा एनएफ़बीसुविधाएं संबंधित विनियमित संस्थाओं पर लागू मौजूदा अनुदेशों द्वारा शासित होंगी।
सी. परिभाषाएँ
5. इन निदेशों के प्रयोजन के लिए, निम्नलिखित परिभाषाएँ लागू होंगी:
ए. "लाभार्थी" का अर्थ है वह पार्टी जिसके पक्ष में विनियमित संस्था द्वारा एनएफबी सुविधा जारी की जाती है।
बी. "बिलों की सह-स्वीकृति" का अर्थ है यदि क्रेता/ आयातकर्ता नियत दिनांक पर भुगतान करने में विफल रहता है तो बिल के आहर्ता (विक्रेता/ निर्यातक) को उस दिनांक पर भुगतान करने का वचन देना।
सी. "गारंटी" का अर्थ किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा, गैर-निष्पादन या चूक की आकस्मिक स्थिति में, उसके किए गए वादे को पूरा करने या उसके दायित्व का निर्वहन करने के लिए किया गया अनुबंध है, जो कि भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अनुसार है।
डी. "गारंटीकर्ता" उस पक्ष को संदर्भित करता है जो गारंटी जारी करता है।
ई. "बाध्यताधारी" अर्थात वह पक्ष जिसके वित्तीय या अन्य दायित्वों के विरुद्ध एनएफबी सुविधा जारी की गई है। गारंटियों के मामले में, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत दी गई परिभाषा के अनुसार, बाध्यताधारी को 'मुख्य देनदार' भी कहा जाता है।
एफ. "एनएफबी सुविधा का संरक्षित हिस्सा" यह सुविधा का वह भाग है जो यथार्थवादी आधार पर अनुमानित मूर्त प्रतिभूति/संपार्श्विक के वसूली योग्य मूल्य द्वारा कवर किया जाता है।
अध्याय II
सामान्य शर्तें
6. विनियमित संस्था की ऋण नीति में एनएफबी सुविधाएं प्रदान करने के लिए उपयुक्त प्रावधान शामिल होंगे, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ एनएफबी सुविधाओं के प्रकार, अनुमत सीमाएँ, क्रेडिट मूल्यांकन, प्रतिभूति आवश्यकता, धोखाधड़ी निवारण, स्वीकृति-पश्चात निगरानी सहित समग्र निगरानी तंत्र, प्रत्यायोजन मैट्रिक्स, लेखा परीक्षा और आंतरिक नियंत्रण, मानक निर्धारण निकायों द्वारा जारी समान मानकों का अनुपालन और अन्य सुरक्षा उपायों से संबंधित पहलू शामिल होंगे।
7. कोई भी विनियमित संस्था केवल उस ग्राहक की ओर से एनएफबी सुविधा प्रदान करेगी जिसके पास विनियमित संस्था से ऋण सुविधा का वित्तपोषण हो।
बशर्ते कि यह खंड निम्नलिखित के संबंध में लागू नहीं होगा:
ए. विनियमित संस्था द्वारा प्रतिपक्ष के साथ किए गए व्युत्पन्न अनुबंध।
बी. आंशिक क्रेडिट वृद्धि सुविधा, जैसा कि इन निदेशों के खंड 23 के अंतर्गत अनुमत है।
सी. किसी अन्य विनियमित संस्था की प्रति-गारंटी के आधार पर जारी एनएफबी सुविधाएं, जैसा कि इन निदेशों के खंड 15 के अंतर्गत अनुमत है।
डी. किसी ऐसे बाध्यताधारी की ओर से एनएफबी सुविधाएं, जिसने भारत में किसी भी विनियमित संस्था से कोई निधि-आधारित सुविधा नहीं ली है।
ई. विनियमित संस्था/ विनियमित संस्थाओं जिन्होंने बाध्यताधारी को निधि आधारित सुविधा प्रदान की है द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र पर विनियमित संस्था द्वारा विस्तारित एनएफबी सुविधाएं,
एफ. एनएफबी सुविधाएं जो पात्र वित्तीय संपार्श्विक द्वारा पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
स्पष्टीकरण: सभी विनियमित संस्थाओं के लिए यहां निर्दिष्ट पात्र वित्तीय संपार्श्विक, 01 अप्रैल 2025 के समय-समय पर अद्यतन किए गए मास्टर परिपत्र – बासल III पूंजी विनियमन के पैराग्राफ 7.3.5 में दी गई परिभाषा अनुसार होंगे।
8. जब तक रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किसी विनियामक दिशानिर्देश/ निदेशों के तहत विशेष रूप से अनुमति न दी गई हो, विनियमित संस्था किसी भी संस्था को एनएफबी सुविधा जारी नहीं करेगी जो किसी भी संस्था द्वारा जमाराशि, बॉण्ड जारी करने या किसी अन्य रूप में जुटाई गई धनराशि के मोचन/ पुनर्भुगतान का आश्वासन देती हो।
9. जब कोई एनएफबी सुविधा अंतरित हो जाती है और निधि आधारित सुविधा में परिवर्तित हो जाती है, तो निधि आधारित सुविधाओं पर लागू विवेकपूर्ण मानदंड लागू होंगे।
अध्याय – III
गारंटी और सह-स्वीकृति के लिए लागू शर्तें
ए. गारंटी
10. सामान्य तौर पर, विनियमित संस्था (गारंटीकर्ता) द्वारा जारी गारंटी (अथवा प्रति-गारंटी) अपरिवर्तनीय (अर्थात, अनुबंध में कोई खंड नहीं होगा जो गारंटीकर्ता को एकतरफा रद्द करने की अनुमति देगा), शर्तरहित (अर्थात अनुबंध में कोई खंड नहीं होगा जब मूल काउंटरपार्टी अपने दायित्व को पूरा करने में विफल रहती है तब आरई को समय पर भुगतान करने के लिए बाध्य होने से रोक सकता है), निर्विवाद होगी और जब इसका आह्वान किया जाता है तो उसे बिना किसी आपत्ति के सकारने के लिए स्पष्ट तंत्र होगा।
11. विनियमित संस्था सामान्य रूप से गारंटी जारी करने और विशेष रूप से अरक्षित गारंटियां जारी करने के लिए उपयुक्त आंतरिक समुच्चय/व्यक्तिगत उच्चतम सीमा निर्धारित करेगी।
बशर्ते कि यूसीबी, आरआरबी, एलएबी, राज्य सहकारी बैंक और सीसीबी के बकाया गारंटीकृत दायित्वों की कुल मात्रा निरंतर रूप से पिछले वित्तीय वर्ष के तुलन पत्र के अनुसार उनकी कुल आस्तियों के 5% से अधिक नहीं होगी। इसके अलावा, इन विनियमित संस्थाओं की अरक्षित गारंटियां कुल आस्तियों के 1.25% तक सीमित होंगी। इन निदेशों के जारी होने की तारीख को उपर्युक्त पूर्वापेक्षा का उल्लंघन करनेवाली ऐसी कोई भी विनियमित संस्था 01 अप्रैल, 2027 तक उपर्युक्त निर्धारित सीमा पूरा करेगी।
12. गारंटियों से संबंधित आंतरिक नीति के प्रावधानों में, अन्य बातों के साथ-साथ, गारंटी लागू करने और निपटान तंत्र, दावा अवधि, परिपक्वता काल, फीस/ कमीशन/ लागू प्रभार, प्रतिभूति जारी करने की समयसीमा, नवीनीकरण, धोखाधड़ी रोकथाम उपायों आदि से संबंधित पहलुओं का समाधान किया जाएगा।
इलेक्ट्रॉनिक-गारंटी का उपयोग
13. जब भी विनियमित संस्था द्वारा इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जारी की जाती है तो, वह मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करेगी जिसका उद्देश्य होगा हस्तचालित हस्तक्षेप को न्यूनतम करना; सिस्टम एकीकरण अपेक्षाएँ पूरी करना; विनियमित संस्था के इंटरफेस और इलेक्ट्रॉनिक गारंटी प्लेटफॉर्म, ऑडिट और आंतरिक नियंत्रण आदि में तकनीकी संगतता सुनिश्चित करना। एसओपी में, अन्य बातों के साथ-साथ, अनुबंध 1 में दिए गए पहलुओं पर भी विचार किया जाएं।
अन्य आरई के पक्ष में गारंटी
14. विनियमित संस्था, सामान्य रूप से, किसी अन्य विनियमित संस्था के पक्ष में गारंटी प्रदान नहीं करेगी ताकि वह किसी बाध्यताधारी को कोई निधि आधारित क्रेडिट सुविधा प्रदान कर सके।
बशर्ते कि यह खंड व्यापार संबंधी लेनदेन से संबंधित गारंटी पर दी गई क्रेडिट सुविधाओं के मामले में लागू नहीं होगा।
15. तथापि, विनियमित संस्था विस्तारित एनएफबी सुविधा के लिए दूसरी विनियमित संस्था के पक्ष में गारंटी प्रदान कर सकता है। विनियमित संस्था द्वारा जारी ऐसी गारंटी को पूंजी पर्याप्तता की गणना सहित सभी प्रयोजनों के लिए उस बाध्यताधारी पर एक्सपोजर के रूप में माना जाएगा जिसकी ओर से उसके द्वारा गारंटी जारी की गई है। गारंटी पर क्रेडिट सुविधा प्रदान करनेवाली विनियमित संस्था के एक्सपोजर को उस विनियमित संस्था पर दावा/एक्सपोजर माना जाएगा जो काउंटर गारंटी प्रदान कर रहा है।
लागू गारंटी का समय पर भुगतान
16. विनियमित संस्था अपने द्वारा जारी गारंटी का सम्मान करेगा जब और जैसे उसका गारंटी विलेख के नियमों और शर्तों के अनुसार आह्वान किया जाएगा, जब तक उस पर रोक लगाने का न्यायालय का आदेश न हो।
बी. सह-स्वीकृतियाँ
17. केवल वास्तविक व्यापार बिलों को सह-स्वीकार किया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बिलों में कवर किया गया सामान वास्तव में उधारकर्ताओं के स्टॉक खातों में प्राप्त किया गया है।
18. प्रत्येक ग्राहक के सह-स्वीकृत बिलों का उचित रिकॉर्ड रखा जाएगा, ताकि प्रत्येक ग्राहक के लिए प्रतिबद्धताओं और शाखा में कुल प्रतिबद्धताओं का आसानी से पता लगाया जा सके, और यह आंतरिक लेखा परीक्षा का भाग होगा।
19. विनियमित संस्था किसी अन्य विनियमित संस्था द्वारा आहरित किए गए बिलों अथवा जहां खरीददार/ विक्रेता ने किसी विनियमित संस्था से अंतर्निहित व्यापार लेनदेन के लिए धन प्राप्त किया है, को सह-स्वीकार नहीं करेगी।
सी. अन्य विशिष्ट गारंटियों के लिए अपेक्षाएँ
गारंटी और संबंधित व्यवसाय जिसमें विदेशी चालू या पूंजी खाता लेनदेन शामिल है
20. प्राधिकृत व्यापारी (एडी) के रूप में अनुमत विनियमित संस्था, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत जारी विद्यमान विनियमों/निदेशों के तहत अनुमत वास्तविक चालू या पूंजी खाता लेनदेन के लिए एनएफबी सुविधाओं का विस्तार कर सकते हैं, जिसमें भारत से निर्यात के कारण निर्यातक द्वारा लिए गए ऋण या अन्य देयता की गारंटी शामिल है।
21. एडी बैंकों को विदेशी संस्था या उसकी ओर से गारंटी जारी करने की भी अनुमति दी गई है, या उसकी किसी भी स्टेप-डाउन सहायक कंपनी को, जिसमें भारतीय संस्था ने विदेशी संस्था के माध्यम से नियंत्रण प्राप्त किया है, जो भारतीय संस्था या उसकी समूह कंपनी द्वारा दी गई काउंटर-गारंटी या संपार्श्विक से समर्थित है। बशर्ते कि विदेश में सामान्य व्यावसायिक गतिविधियों के अलावा ऐसी गारंटियाँ बैंकों द्वारा, भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं/ सहायक कंपनियों सहित, किसी भी प्रकार के ऋण/ अग्रिम लेने के उद्देश्य से जारी नहीं की जाएँगी। इसके अलावा, ऐसी गारंटियाँ प्रदान करते समय, बैंकों को ऐसी सुविधाओं के अंतिम उपयोग की प्रभावी निगरानी और ऐसी संस्थाओं की व्यावसायिक आवश्यकताओं की अनुरूपता सुनिश्चित करनी होगी।
स्टॉक/ कमोडिटी ब्रोकर्स की ओर से गारंटी
22. केवल अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एससीबी) स्टॉक/ कमोडिटी ब्रोकरों की ओर से स्टॉक/ कमोडिटी एक्सचेंजों के पक्ष में प्रतिभूति जमाराशि के बदले में गारंटी जारी कर सकते हैं, जहां तक यह एक्सचेंजों द्वारा निर्धारित बैंक गारंटी के रूप में स्वीकार्य है। एससीबी इस संबंध में समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अन्य अनुदेशों के साथ पठित विनिमय विनियमों के अनुसार मार्जिन आवश्यकताओं के बदले में गारंटी भी जारी कर सकते हैं।
अध्याय - IV
आंशिक क्रेडिट वृद्धि
23. एससीबी (आरआरबी को छोड़कर), एआईएफआई, एनबीएफसी जिसमें एचएफसी शामिल हैं जो मध्यम स्तर और उससे ऊपर (अध्याय IV के प्रयोजन के लिए सामूहिक रूप से "विनियमित संस्था" कहा जाता है) सभी प्रकार की परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए कॉर्पोरेट/ विशेष प्रयोजन वाहनों (एसपीवी) द्वारा जारी किए गए बॉण्ड और ₹1,000 करोड़ और उससे अधिक का आस्ति आकार के साथ गैर-जमा स्वीकार करने वाली आरबीआई में पंजीकृत एनबीएफसी (एचएफसी सहित) बॉण्ड को आंशिक क्रेडिट वृद्धि (पीसीई) प्रदान कर सकती हैं। समय-समय पर संशोधित 01 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र-ऋण और अग्रिम – सांविधिक और अन्य प्रतिबंधों के पैरा 2.3.7.3 (iii) के अनुपालन के अधीन नगर निगमों द्वारा जारी किए गए बॉण्ड को भी पीसीई प्रदान किया जा सकता है
24. विनियमित संस्था को पीसीई का विस्तार करने की अनुमति देने का उद्देश्य जारी किए गए बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग को बढ़ाना है, ताकि कॉरपोरेट्स को बेहतर शर्तों पर बॉन्ड बाजार से धन प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके। इस संबंध में दिशानिर्देश निम्नानुसार हैं:
ए. पीसीई सुविधा की मुख्य विशेषताएं.
25. विनियमित संस्था की क्रेडिट नीति में पीसीई जारी करने के लिए उपयुक्त प्रावधान शामिल किए जाएंगे जिनमें पीसीई की मात्रा, हामीदारी मानक, जोखिम आकलन, मूल्य निर्धारण, सीमा निर्धारण आदि जैसे मुद्दे सम्मिलित होंगे
26. पीसीई एक अधीनस्थ सुविधा होगी जो क्रेडिट की एक अप्रतिसंहरणीय आकस्मिक लाइन के रूप में प्रदान की जाएगी जो बॉन्ड की सर्विसिंग के लिए नकदी प्रवाह में कमी के मामले में ली जाएगी और इस तरह बॉन्ड इश्यू की क्रेडिट रेटिंग में सुधार हो सकता है। विनियमित संस्था द्वारा प्रदान करने वाले पीसीई के विवेक पर आकस्मिक सुविधा को परिक्रामी सुविधा के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है।
27. इस व्यवस्था के सभी पहलुओं का दस्तावेजीकरण करने वाले स्पष्ट समझौते पर प्रमोटर (बॉन्ड जारीकर्ता), पीसीई प्रदान करने वाली विनियमित संस्था , बॉन्डधारकों (ट्रस्टी के माध्यम से) और परियोजना के अन्य सभी उधारदाताओं द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे। इस आशय का समझौता विधिक रूप से बाध्यकारी अनुबंध की प्रकृति में होगा। इस सुविधा के दस्तावेजीकरण में स्पष्ट रूप से उन परिस्थितियों को परिभाषित किया जाएगा जिनके तहत यह सुविधा ली जाएगी।
28. एकल विनियमित संस्था द्वारा पीसीई एक्सपोजर सीमा बॉण्ड इश्यू आकार का 50 प्रतिशत होगी। किसी बॉण्ड इश्यू हेतु पीसीई के लिए सभी विनियमित संस्थाओं की कुल एक्सपोजर सीमा को भी बॉन्ड इश्यू आकार के 50 प्रतिशत पर सीमित किया गया है।
29. पीसीई सुविधा बॉण्ड जारी करते समय प्रदान की जाएगी और अपरिवर्तनीय होगी। गारंटी के माध्यम से पीसीई प्रदान नहीं की जा सकती।
30. विनियमित संस्थाओं द्वारा पीसीई प्रदान करने का प्रयोजन कारपोरेट बॉण्ड बाजार में व्यापक निवेशक भागीदारी को समर्थ करना है। इसलिए विनियमित संस्थाएं अन्य विनियमित संस्थाओं द्वारा पीसीई प्रदान किए गए कारपोरेट बॉण्ड में निवेश नहीं करेंगी। तथापि, वे कारपोरेट/ एसपीवी को अन्य आवश्यकता आधारित क्रेडिट सुविधाएं (वित्तपोषित और/ अथवा गैर-वित्त पोषित) प्रदान कर सकते हैं।
31. विनियमित संस्थाएं केवल ऐसे बॉण्ड के लिए पीसीई का प्रस्ताव कर सकते हैं जिनकी पूर्व-संवर्धित रेटिंग मान्यता प्राप्त बाहरी क्रेडिट मूल्यांकन संस्थानों (ईसीएआई) द्वारा जारी किए गए "बीबीबी" माइनस से कम नहीं है।
32. पीसीई हेतु पात्र होने के लिए, कॉर्पोरेट बॉण्ड को निरंतर न्यूनतम दो ईसीएआई द्वारा रेटिंग दी जानी चाहिए।
33. प्रारंभिक और अनुवर्ती दोनों रेटिंग रिपोर्टों में एकल साख निर्धारण (स्टैंडअलोन क्रेडिट रेटिंग) (अर्थात, पीसीई के प्रभाव को ध्यान में रखे बिना रेटिंग) के साथ-साथ वर्धित साख निर्धारण (पीसीई के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए) का भी प्रकटीकरण किया जाएगा।
34. जब तक परियोजना ऋण के लिए विनियमित संस्था का एक्सपोजर मानक के रूप में वर्गीकृत है और उधारकर्ता किसी वित्तीय संकट (वित्तीय कठिनाई के संकेतों की सांकेतिक सूची के लिए 7 जून 2019 के दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु विवेकपूर्ण ढाँचे के अनुलग्नक 1 का संदर्भ लें) में नहीं है, तब तक बॉन्ड इश्यू की रेटिंग बढ़ाने के लिए वाणिज्यिक रूप से मूल्यांकित पीसीई प्रदान करना, जिसकी आय पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से, विनियमित संस्था के परियोजना ऋण को प्रतिस्थापित करती है, पुनर्रचना नहीं माना जाएगा।
35. पीसीई केवल बॉण्ड की सर्विसिंग के लिए उपलब्ध होगा, किसी अन्य प्रयोजन (जैसे कॉर्पोरेट द्वारा अतिरिक्त आस्तियों के अधिग्रहण के लिए निधि उपलब्ध कराना, परियोजना लागत का कुछ हिस्सा वहन करना या कॉर्पोरेट के आवर्ती खर्चों को पूरा करना अथवा परियोजना के अन्य ऋणदाताओं/लेनदारों को सेवा प्रदान करना आदि) के लिए नहीं, चाहे बॉण्ड धारकों के संबंध में अन्य लेनदारों के दावों की वरिष्ठता कुछ भी हो।
36. यदि पीसीई सुविधा आंशिक रूप से आहरित की जाती है और उस पर ब्याज अर्जित होता है, तो भुगतान न किए गए अर्जित ब्याज को आहरण हेतु उपलब्ध शेष राशि की गणना से बाहर रखा जाएगा।
बी. पीसीई प्रदान करने के कारण उत्पन्न होने वाले जोखिमों के लिए तुलन-पत्र उपाय, पूंजीगत अपेक्षाएं, जोखिम और आस्ति वर्गीकरण मानदंड
37. पीसीई सुविधाएं जिनका परिसीमित उपयोग किया गया है उन्हें तुलन-पत्र में तुलन-पत्र (ऑन-बैलेंस शीट) का अग्रिम माना जाएगा। अनुपयुक्त सुविधाएँ तुलन-पत्रेतर (ऑफ-बैलेंस शीट) मद होंगी और उन्हें 'आकस्मिक देयता - अन्य' के अंतर्गत रिपोर्ट किया जाएगा।
38. किसी विशेष बॉण्ड इश्यू के लिए पीसीई प्रदान करने वाले विनियमित संस्था द्वारा बनाए रखे जानेवाली पूंजी की मात्रा पीसीई राशि और बॉण्ड की पूर्व-वर्धित रेटिंग के अनुरूप विनियमित संस्था के लिए लागू जोखिम भार पर आधारित होगी।
उदाहरण के लिए, एससीबी के मामले में, मान लें कि कुल बॉण्ड का आकार ₹100 है और बॉण्ड की पूर्व-वर्धित रेटिंग बीबीबी है। इस परिदृश्य में, बीबीबी की पूर्व-वर्धित रेटिंग पर लागू जोखिम भार 100% है।
इसलिए, अलग-अलग मात्रा में पीसीई के लिए पूंजीगत अपेक्षा (9% सीआरएआर मानते हुए) होगी:
| पीसीई राशि (₹) |
पीसीई प्रदाता के लिए पूंजीगत अपेक्षा (₹) |
| 20 |
1.8 (20*100%*9%) |
| 30 |
2.7 (30*100%*9%) |
| 40 |
3.6 (40*100%*9%) |
| 50 |
4.5 (50*100%*9%)
|
39. पीसीई प्रदाता की बहियों में पूंजी की गणना, दो पूर्व-वर्धित क्रेडिट रेटिंग में से जो कम है वह ली जाएगी।
40. यह संभव है कि बॉन्ड के जीवनकाल के दौरान बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग में परिवर्तन हो जिससे कि पूंजीगत अपेक्षा में बदलाव की आवश्यकता हो। इसलिए, बॉण्ड की रेटिंग की नियमित रूप से निगरानी की जाएगी, और पूंजीगत अपेक्षा निम्नलिखित प्रणाली के अनुसार समायोजित की जाएगी:
-
बॉण्ड की पूर्व-वर्धित रेटिंग में परिवर्तन होने पर, आवश्यक पूंजी की गणना संशोधित पूर्व-वर्धित रेटिंग पर लागू जोखिम भार के आधार पर की जाएगी, जो कि एक न्यूनतम सीमा के अधीन होगी, अर्थात पीसीई वर्धित बॉण्ड जारी करते समय पीसीई पर पूंजीगत अपेक्षा।
-
जब तक बॉण्ड की बकाया राशि प्रस्तावित समग्र पीसीई (आहरणीय और आकस्मिक गैर-निधिकृत) से अधिक है, तब तक धारित पूंजीगत पीसीई वर्धित बॉण्ड जारी करने के समय धारित की जाने वाली अपेक्षित राशि से कम नहीं होगी। तथापि, जब बकाया बॉण्ड का परिशोधन कुल पीसीई राशि से कम हो जाता है, तो बकाया बॉण्ड राशि को ध्यान में रखते हुए पूंजी की गणना की जा सकती है।
-
ऐसी स्थिति में, जहां बॉण्ड की पूर्व-वर्धित रेटिंग निवेश ग्रेड (बीबीबी ऋणात्मक) से नीचे चली जाती है, एनबीएफसी और एचएफसी सहित सभी विनियमित संस्था द्वारा पीसीई की सीमा तक पूर्ण पूंजी बनाए रखी जाएगी।
41. सभी परिस्थितियों में, उपरोक्तानुसार वर्णित पीसीई के लिए गणना की गई पूंजी और पीसीई प्रदाता द्वारा अनुरक्षित की जानेवाली अपेक्षित पूंजी, पीसीई की कुल राशि तक सीमित की जाएगी।
42. वाटरफॉल तंत्र में, क्रेडिट वृद्धि (सीई) केवल आकस्मिक स्थिति में ही आहारित की जाती है जिसमें ऋण/ बॉण्ड आदि की सर्विसिंग के लिए नकदी प्रवाह की कमी होती है, न कि सामान्य कार्य प्रणाली में। अत: इस तरह की घटना परियोजना के वित्तीय संकट का संकेत है। इस पहलू को ध्यान में रखते हुए, आकस्मिक पीसीई सुविधा की आहरित किश्त को आहरण की तिथि (देय तिथि) से 30 दिनों के भीतर चुकाना होगा। यदि यह सुविधा देय तिथि से 90 दिन अथवा उससे अधिक समय तक बकाया रहती है तो इसे एनपीए माना जाएगा तथा सामान्य आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण मानदंडों के अनुसार इसका प्रावधान किया जाएगा। ऐसी स्थिति में, उधारकर्ता को दी जाने वाली विनियमित संस्था की अन्य सुविधाएं भी मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार एनपीए के रूप में वर्गीकृत की जाएंगी।
43. पीसीई प्रदान करने वाली विनियमित संस्था निम्नलिखित एक्सपोजर सीमाओं का पालन करेगी:
-
किसी एकल प्रतिपक्षकार अथवा प्रतिपक्षकार समूह के लिए किसी विनियमित संस्था द्वारा पीसीई जोखिम, विनियमित संस्था की प्रत्येक श्रेणी पर लागू समग्र विनियामक जोखिम सीमा के भीतर होगा।
-
किसी विनियमित संस्था का कुल पीसीई एक्सपोजर उसकी टियर 1 पूंजी के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।
सी. एनबीएफसी और एचएफसी के बॉण्ड को पीसीई प्रदान करने के लिए अतिरिक्त शर्तें
44. एनबीएफसी/ एचएफसी द्वारा जारी बॉण्ड की अवधि, जिसके लिए पीसीई प्रदान की जाती है, तीन वर्ष से कम नहीं होगी।
45. विनियमित संस्था से पीसीई द्वारा समर्थित बॉण्ड से प्राप्त आय का उपयोग केवल एनबीएफसी/ एचएफसी के मौजूदा ऋण के पुनर्वित्तीयन के लिए किया जाएगा। विनियमित संस्था निगरानी के लिए उपयुक्त तंत्र संचालित करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि अंतिम उपयोग की स्थिति पूरी हो गई है।
46. ऐसे प्रत्येक एनबीएफसी/ एचएफसी द्वारा जारी बॉण्ड के लिए पीसीई के माध्यम से संशोधित अनुमान का एक्सपोजर विद्यमान एकल/ समूह उधारकर्ता एक्सपोजर सीमाओं के भीतर विनियमित संस्था की पूंजीगत निधियों के एक प्रतिशत तक सीमित होगा।
डी. पीसीई के अन्य पहलू
47. बॉण्ड रेटिंग पर पीसीई के प्रभाव का प्रकटीकरण बॉण्ड प्रस्ताव दस्तावेज में किया जाएगा, अर्थात् पीसीई के बिना और पीसीई के साथ बॉण्ड की रेटिंग का प्रकटीकरण किया जाएगा।
48. विनियमित संस्थाएं सुनिश्चित करेंगी कि उनके द्वारा प्रदान किए गए बॉण्ड निर्गम से सृजित परियोजना आस्तियां तथा परियोजना से होने वाले नकदी प्रवाह को बॉण्ड ट्रस्टी व्यवस्था के अंतर्गत प्रशासित एस्क्रो खाता तंत्र के माध्यम से सुरक्षित रखा गया है। परियोजना आस्तियों में प्रतिभूति हित को परियोजना के ऋणदाताओं, बॉण्ड धारकों और पीसीई प्रदान करने वाली विनियमित संस्था द्वारा किस प्रकार साझा किया जाएगा तथा ऋण, यदि कोई हो, और बॉण्ड एवं पीसीई की सर्विसिंग के लिए परियोजना नकदी प्रवाह को किस प्रकार साझा किया जाएगा, इसका निर्णय बॉण्ड जारी करने से पहले लिया जाएगा तथा इस पर सहमति बनाई जाएगी और इसे उचित रूप से प्रलेखित किया जाएगा।
49. क्रेडिट वृद्धि को ध्यान में रखे जाने से पहले ही परियोजना का वित्तीय ढांचा मजबूत और व्यवहार्य होना चाहिए। तथापि, पीसीई प्रदान करते समय, विनियमित संस्था को समुचित सावधानी और क्रेडिट मूल्यांकन करना होगा, जिसमें स्वयं का आंतरिक क्रेडिट विश्लेषण/ रेटिंग करना भी शामिल है।
50. संबंधित उधारकर्ता की क्रेडिट सुविधाओं के आस्ति वर्गीकरण पर ध्यान दिए बिना, विनियमित संस्था द्वारा पूर्ण पीसीई प्रतिबद्धता का पालन किया जाएगा।
51. जब तक कि इस निदेश में अन्यथा निर्दिष्ट न किया जाए, विनियमित संस्था द्वारा ऋण और निवेश जोखिमों के लिए सभी विद्यमान विनियामक निदेश लागू होते रहेंगे।
अध्याय - V
अपवर्जन और अन्य पहलू
52. ये निदेश, समय-समय पर संशोधित, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999; विदेशी मुद्रा प्रबंध (गारंटी) विनियमन, 2000, जिन्हें दिनांक 03 मई 2000 को जारी अधिसूचना संख्या फेमा 8/2000-आरबी द्वारा अधिसूचित किया गया है, के अंतर्गत जारी निदेशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किए गए हैं,।
53. उपर्युक्त खंड 52 के बावजूद, विनियमित संस्था को समय-समय पर संशोधित भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए जोखिम मानदंडों सहित सभी संबंधित विनियामक मानदंडों का पालन करना होगा।
54. इन निदेशों के प्रभावी होने के साथ ही अनुलग्नक 2 में निहित अनुदेश/ दिशानिर्देश प्रभावी तिथि से निरस्त हो जाएंगे। उपर्युक्त निरसन प्रावधान के बावजूद, कुछ भी किया गया हो या कोई कार्रवाई की गई हो या की गई होने का दावा किया गया हो या कोई निर्देश दिया गया हो या कोई कार्यवाही की गई हो या लगाए गए किसी भी दंड या जुर्माने को, जहां तक इन निर्देशों के प्रावधानों के अनुसार असंगत नहीं है, इन निदेशों के संबंधित प्रावधानों के तहत किया गया माना जाएगा।
अध्याय VI
प्रकटीकरण
55. विनियमित संस्था एनएफबी क्रेडिट सुविधाओं का विवरण नीचे दिए गए प्रारूप में प्रकट करेगा:
| |
31 मार्च 20XX को |
31 मार्च 20XX को |
पिछले वर्ष |
पिछले वर्ष |
| संरक्षित*हिस्सा |
गैर-संरक्षित हिस्सा |
संरक्षित*हिस्सा |
गैर-संरक्षित हिस्सा |
| I |
बकाया गारंटी |
|
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|
|
| |
i) भारत में |
|
|
|
|
| |
ii) भारत के बाहर |
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|
|
|
| II |
स्वीकृतियां, परांकन और अन्य दायित्व |
|
|
|
|
| III |
अन्य एनएफबी क्रेडिट सुविधाएं |
|
|
|
|
| * संरक्षित हिस्सा इस निदेश के तहत परिभाषित है। |
अनुबंध 1
इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जारी करने के लिए परिचालन जोखिम नियंत्रण
ए. नीति और एसओपी
-
विनियमित संस्था को अपनी क्रेडिट नीति में उपयुक्त सक्षम प्रावधान रखने होंगे, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक गारंटी को अपनाना, जोखिम नियंत्रण लागू करना, प्राधिकार का प्रत्यायोजन, निगरानी प्रक्रिया आदि शामिल होंगे।
-
विनियमित संस्था उपयोगकर्ता के संदर्भ के लिए उपयुक्त मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) लागू करेंगी, जिसमें संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जीवनचक्र के दौरान अपनाए जाने वाले सभी चरणों का विवरण होगा। यह सुनिश्चित किए बिना कि अंतर्निहित लेनदेन कोर बैंकिंग प्रणाली (सीबीएस)/ व्यापार वित्त प्रणाली (टीएफएस) में विधिवत रूप से प्रतिबिंबित हो गया है, इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जारी नहीं की जाएगी।
बी. प्रणालियों का एकीकरण
-
विनियमित संस्था के पास नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों को कवर करने वाला एक मजबूत नियंत्रण वातावरण होगा; सुदृढ़ आंतरिक नियंत्रण होगा; तथा इलेक्ट्रॉनिक गारंटी से संबंधित सभी कार्यों के लिए उचित जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियां होंगी।
-
विनियमित संस्था सुनिश्चित करेंगी कि इलेक्ट्रॉनिक गारंटियों के संपूर्ण जीवनचक्र से संबंधित सभी विशेषताएं जैसे निर्गम, संशोधन, लागू करना, निरसन आदि इलेक्ट्रॉनिक गारंटी सेवा प्रदाता के साथ उपयुक्त एकीकरण के माध्यम से विनियमित संस्था के प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होंगी।
-
सीबीएस/ टीएफएस को इलेक्ट्रॉनिक गारंटी सेवा प्रदाता द्वारा दिए गए एपीआई और अन्य संबंधित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म के साथ स्ट्रेट थ्रू प्रोसेसिंग (एसटीपी) मोड में, बिना किसी हस्तचालित हस्तक्षेप के एकीकृत किया जाएगा।
सी. उपयोगकर्ता भूमिकाएं
-
विनियमित संस्था के पास इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जारी करने और निगरानी के लिए 'मेकर, चेकर और ऑथराइज़र' की एक कुशल प्रणाली होनी चाहिए, साथ ही सख्त एक्सेस नियंत्रण और भूमिका तथा जवाबदेही का प्रभावी पृथक्करण सुनिश्चित करना होगा।
-
इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जारी करने के जीवनचक्र में शामिल कोई भी भूमिका कर्तव्यों के पृथक्करण के सिद्धांत, चार/छह आई(eye) सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करेगी और किसी भी कर्मचारी को विभिन्न प्रणालियों, एप्लिकेशन में ऐसी भूमिकाएं/विशेषाधिकार आवंटित नहीं किए जाएंगे जो प्रकृति में विरोधाभासी हों या चार/छह आई (eye) सिद्धांत का उल्लंघन करते हों।
-
सिस्टम एक्सेस केवल निर्दिष्ट उपयोगकर्ताओं को ही प्रदान किया जाएगा और जेनेरिक उपयोगकर्ता आईडी के माध्यम से एक्सेस की अनुमति नहीं होगी। उपयोगकर्ता समीक्षा निरंतर, निर्धारित आवधिकता पर और किसी भी समय संबंधित अधिकारों तथा विशेषाधिकारों के साथ पहचान योग्य होगी। उपयोगकर्ता विशेषाधिकार "जानने की आवश्यकता (नीड़ टू नो)/करने की आवश्यकता (नीड़ टू डू)" के आधार पर तय किए जाएंगे।
डी. नियंत्रण उपाय
-
विनियमित संस्था के पास विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान जारी/संशोधित/रद्द की गई सभी इलेक्ट्रॉनिक गारंटियों की आवधिक समीक्षा और समाधान की प्रणाली होगी।
-
इलेक्ट्रॉनिक गारंटी जारी करना अनिवार्य रूप से विनियमित संस्था के समवर्ती लेखापरीक्षा और आरबीआईए के दायरे में शामिल किया जाएगा।
ई. अन्य पहलू
-
इलेक्ट्रॉनिक गारंटी प्रणालियों की मजबूती सुभेद्यता मूल्यांकन/ व्यापन परीक्षण (वीए/ पीटी), सूचना प्रणाली लेखा परीक्षा का हिस्सा होगी।
-
दैनिक लेन-देन के लिए विक्रेताओं पर निर्भरता वर्जित से बचा जाए। विक्रेताओं को उत्पादन प्रणालियों तक एक्सेस केवल नियंत्रित वातावरण में ही प्रदान की जाएगी और ऑडिट ट्रेल बनाए रखा जाएगा।
-
सिक्योरिटी इंसिडेंट एंड इवेंट मैनेजमेंट (एसआईईएम) उपकरण को संबंधित सर्वर और कंसोल/ पीसी, जो इलेक्ट्रॉनिक गारंटी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रणालियों से सीधे इसके वीएलएएन में जुड़ेगा, के साथ एकीकृत किया जाएगा ताकि स्वचालित अलर्ट उत्पन्न हो सके।
-
विनियमित संस्था इलेक्ट्रॉनिक गारंटी प्रणालियों को विशेषाधिकार प्राप्त उपयोगकर्ता प्रबंधन प्रणालियों/पहचान एवं एक्सेस प्रबंधन प्रणालियों के साथ एकीकृत करेंगी। इनके लॉग की निगरानी सुरक्षा संचालन केंद्र (एसओसी) सेटअप के माध्यम से की जाएगी।
-
प्रणाली की विफलताओं के लिए व्यवसाय निरंतरता उपाय और आकस्मिक योजनाएं, विनियमित संस्था द्वारा लागू की जाएंगी।
अनुबंध 2
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के संबंध में निरस्त किए गए परिपत्रों की सूची
| क्र.सं. |
परिपत्र संख्या |
जारी करने की तारीख |
विषय |
| 1 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.666/सी.96जेड -67 |
03 मई 1967 |
बैंकों द्वारा किए जाने वाले गारंटी कारोबार के लिए दिशानिर्देश और मानदंड |
| 2 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1069/सी.96जेड-67 |
11 जुलाई 1967 |
बैंकों का गारंटी कारोबार - दिशानिर्देश – स्पष्टीकरण |
| 3 |
बैंपविवि .सं.अनु.1288/सी.96जेड-67 |
17 अगस्त 1967 |
शेयरों पर अग्रिम और गैर-जमानती अग्रिम - दिशानिर्देश |
| 4 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1296/सी.96जेड-67 |
21 अगस्त 1967 |
बैंक गारंटी |
| 5 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1693/सी.96एस-67 |
08 नवंबर 1967 |
शेयरों पर अग्रिम और गैर-जमानती अग्रिम – दिशानिर्देश |
| 6 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1794/सी.96जेड-67 |
29 नवंबर 1967 |
बैंक गारंटी |
| 7 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1850/सी.96जेड-67 |
07 दिसंबर 1967 |
बैंक गारंटी |
| 8 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.68/सी.96(एस)-68 |
12 जनवरी 1968 |
गैर-जमानती अग्रिम - दिशानिर्देश |
| 9 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.359/सी.96एस-68 |
07 मार्च 1968 |
गैर-जमानती अग्रिम - 90 दिनों की मीयाद वाले अंतर्देशीय डी/ए बिल |
| 10 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.421/सी.96(एस)-68 |
19 मार्च 1968 |
गैर-जमानती अग्रिम - केंद्र/राज्य सरकारों पर आहरित आपूर्ति बिलों के विरुद्ध अग्रिम |
| 11 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.481/सी.96एस-68 |
30 मार्च 1968 |
गैर-जमानती अग्रिम |
| 12 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.2342/सी.96एस-68 |
08 अगस्त 1968 |
बही ऋणों के विरुद्ध अग्रिम |
| 13 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.2381/सी.96(जे)-68 |
14 अगस्त 1968 |
बैंक गारंटी |
| 14 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1001/सी.96जेड-69 |
23 जून 1969 |
बैंक गारंटी |
| 15 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1051/सी.96(एस)-69 |
01 जुलाई 1969 |
निर्यातकों को परेषण आधार पर दिए गए गैर-जमानती अग्रिमों को मानदंड के प्रयोजन हेतु बाहर रखा जाएगा |
| 16 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.1610/सी.96(एस)-70 |
23 अक्तूबर 1970 |
गैर-जमानती अग्रिम और गारंटी |
| 17 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.27/सी.96(एस)-72 |
24 मार्च 1972 |
गैर-जमानती अग्रिमों/गारंटियों से संबंधित मानदंडों के प्रयोजन के लिए अंतर्देशीय डी/ए बिलों के संबंध में छूट जारी रखना |
| 18 |
बैंपविवि .सं.अनु.बीसी.68/सी.109-72 |
31 जुलाई 1972 |
बैंक गारंटी योजना |
| 19 |
बैंपविवि .सं.बीएम.बीसी.81/सी.297(पी)-72 |
14 सितंबर 1972 |
बोली बॉण्ड और कार्य-निष्पादन गारंटी |
20 |
बैंपविवि .सं.एससीएच.बीसी.88/सी.96(एस)-72 |
10 अक्तूबर 1972 |
क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा गारंटीकृत गैर-जमानती अग्रिम। |
| 21 |
बैंपविवि .सं.जीसीएस.बीसी.25/सी.107(एन)-74 |
01 अप्रैल 1974 |
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अंतर-कंपनी जमा/ऋण की गारंटी |
| 22 |
बैंपविवि .सं.एफ़ओआई.बीसी.9/सी.249-76 |
20 जनवरी 1976 |
अंतर-कंपनी जमा/ऋण पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा बिलों/गारंटियों की सह-स्वीकृति |
| 23 |
बैंपविवि .सं.ईसीसी.बीसी.89/सी.297L(1-डी)-76 |
04 अगस्त 1976 |
बोली बॉण्ड और प्रदर्शन गारंटी |
| 24 |
बैंपविवि .सं.ईसीसी.बीसी.77/सी.297एल(1-ए)-77 |
07 जून 1977 |
भारतीय निर्यातकों की ओर से विदेशी नियोक्ताओं/आयातकों के पक्ष में भारतीय बैंकों द्वारा जारी बिना शर्त गारंटी |
| 25 |
बैंपविवि .सं.सीएलजी.बीसी.1/सी.109-78 |
02 जनवरी 1978 |
बैंक गारंटी योजना |
| 26 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.122/सी.107(एन)-78 |
20 सितंबर 1978 |
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अंतर-कंपनी जमा/ऋण की गारंटी |
| 27 |
बैंपविवि .सं.सीएलजी.बीसी.21/सी.109(एच)-80 |
08 फरवरी 1980 |
बैंक गारंटी योजना |
| 28 |
बैंपविवि .सं.आईएनएफ़.बीसी.103/सी.109-80 |
11 सितंबर 1980 |
बैंक गारंटी योजना |
| 29 |
आईसीडी.सं..18/सी.446-82 |
10 फरवरी 1982 |
बैंक गारंटी |
| 30 |
बैंपविवि .सं.सीएलजी.बीसी.91/सी.109(एच)-82 |
30 सितंबर 1982 |
बैंक गारंटी योजना |
| 31 |
आईसीडी.सं.सीएडी.47/सी.446(एचएफ़-पी)-83 |
08 जनवरी 1983 |
हुडको/राज्य आवास बोर्ड और इसी प्रकार के निकायों आदि के पक्ष में बैंकों द्वारा दी गई गारंटियां। |
| 32 |
बैंपविवि .सं.बीपी.678/सी.473-83 |
11 जनवरी 1983 |
बैंक गारंटी |
| 33 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.44/सी.96-83 |
30 मई 1983 |
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अंतर-कंपनी जमा/ऋण की गारंटी |
| 34 |
बैंपविवि .सं.जीसी.एसआईसी.बीसी.97/सी.408(ए)-83 |
26 नवंबर 1983 |
साख पत्र शुरू करना- गारंटी जारी करना और बैंकों द्वारा बिलों की सह-स्वीकृति |
| 35 |
आईईसीडी.सं.सीएडी.82/सी.446(एचएफ़-पी)-84 |
02 फरवरी 1984 |
राज्य आवास बोर्ड और इसी तरह के निकायों को ऋण के संबंध में एचयूडीसीओ के पक्ष में बैंकों द्वारा दी गई गारंटी |
| 36 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.25/सी.96-84 |
26 मार्च 1984 |
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अंतर-कंपनी जमा/ऋण की गारंटी |
| 37 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.111/सी.469(डबल्यू)-85 |
02 सितंबर 1985 |
बैंक लिखत आदि जारी करने के लिए सुरक्षा उपाय। |
| 38 |
आईईसीडी.सं.पीएमएस.129/सी.446(पीएल)-85 |
11अक्तूबर1985 |
सीएएस - आईडीबीआई बिल पुनर्भुनाई योजनाएँ |
| 39 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.18/सी.473-86 |
24 फरवरी 1986 |
बैंक गारंटी |
| 40 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.28/सी.469(डबल्यू)-86 |
07 मार्च 1986 |
बैंक लिखत आदि जारी करने के लिए सुरक्षा उपाय। |
| 41 |
बैंपविवि .सं.आईएनएफ़.बीसी.45/सी.109(एच)-86 |
09 अप्रैल 1986 |
बैंक गारंटी योजना |
| 42 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.130/सी.473-86 |
15 नवंबर 1986 |
बैंक गारंटी |
| 43 |
बैंपविवि .एसआईसी.बीसी.5ए/सी.739 (ए-1)-87 |
29 जनवरी 1987 |
बैंकों द्वारा साख पत्रों के अंतर्गत आहरित बिलों की सह-स्वीकृति |
| 44 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.11/सी.473-87 |
10 फरवरी 1987 |
लागू गारंटियों का भुगतान |
| 45 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.71/सी.473-87 |
10 दिसंबर 1987 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 46 |
बैंपविवि .सं.आईएनएफ़.बीसी.73/सी.109(एच)-89 |
15 फरवरी 1989 |
बैंक गारंटी योजना |
| 47 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.124/सी.473-89 |
31 मई 1989 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 48 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.11/सी.96-89 |
09 अगस्त 1989 |
बैंक गारंटी योजना |
| 49 |
आईईसीडी.सं.पीएमडी.बीसी.12/सी.446(सी&पी)- 90/91 |
21 सितंबर 1990 |
वित्तीय संस्थाओं के पक्ष में गारंटी की सह-स्वीकृति/जारी करना - क्रेता ऋण योजना (बीएलसीएस) |
| 50 |
आईईसीडी.सं.सीएमडी.आईवी.13/एचएफ़-पी-90/91 |
15 अक्तूबर 1990 |
राज्य प्रायोजित निकायों को ऋण के संबंध में हुडको के पक्ष में बैंकों द्वारा गारंटी जारी करना |
| 51 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.35/सी.96(ज़ेड)-90 |
22 अक्तूबर1990 |
बैंक गारंटी योजना |
| 52 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.53/सी.473-91 |
27 नवंबर 1991 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 53 |
बैंपविवि .सं.बीसी.185/21.04.009-93 |
21अक्तूबर1993 |
बैंक गारंटी - निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने में देरी |
| 54 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.194/21.04.009/ 93 |
22 नवंबर 1993 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 55 |
आईईसीडी.सं.21/08.12.01/94-95 |
01 नवंबर 1994 |
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) द्वारा संचालित बिल डिस्काउंटिंग योजनाएं |
| 56 |
आईईसीडी.सं.37/08.12.01/94-95 |
23 फरवरी 1995 |
वित्तीय संस्थानों के पक्ष में बैंक गारंटी जारी करना |
| 57 |
आईईसीडी.सं.21/08.12.01/96-97 |
21 फरवरी 1997 |
पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (पीएफसी) द्वारा संचालित बिल डिस्काउंटिंग/रीडिस्काउंटिंग योजनाएं |
| 58 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.16/21.04.009/97 |
28 फरवरी 1997 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 59 |
आईईसीडी.सं.26/08.12.01/98-99 का पैरा 4.2 |
23 अप्रैल 1999 |
बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का वित्तपोषण |
| 60 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.78/21.04.009/99 |
04 अगस्त 1999 |
बैंक गारंटी |
| 61 |
आईईसीडी.सं.16/08.12.01/2001-02 का पैरा 5 |
20 फरवरी 2002 |
बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का वित्तपोषण |
| 62 |
बैंपविवि .सं. बीपी.बीसी. 90/21.04.141/2001-02 |
18 अप्रैल 2002 |
गैर-जमानती अग्रिमों और गारंटी से संबंधित मानदंडों से क्रेडिट कार्ड बकाया को बाहर रखा जाना |
| 63 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.39/21.04.141/2002-03 |
06 नवंबर 2002 |
समूह गारंटी के विरुद्ध स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को दिए गए अग्रिमों को गैर-जमानती गारंटी और अग्रिमों की सीमा से छूट |
| 64 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.47/21.04.141/2002-03 |
13 दिसंबर 2002 |
गैर-जमानती गारंटियों और अग्रिमों की सीमा |
| 65 |
आईईसीडी.सं.17/08.12.01/2002-03 |
05 अप्रैल 2003 |
गारंटी और सह-स्वीकृति |
| 66 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.35/13.07.10/2006-2007 |
11 अक्तूबर 2006 |
गारंटी और सह-स्वीकृति |
| 67 |
बैंपविवि सं.निदेश.बीसी.72/ 13.03.00/2006-07 |
03 अप्रैल 2007 |
निर्यात अग्रिम के लिए गारंटी |
| 68 |
एमबीसी |
27 मई 2008 |
बैंक गारंटी पर हस्ताक्षर |
| 69 |
एमबीसी |
15 अप्रैल 2009 |
स्वतः नवीनीकरण खंड के साथ बैंक गारंटी |
| 70 |
बैंपविवि .सं.बीपी.बीसी.127/21.04.009/2008-09 |
22 अप्रैल 2009 |
गारंटी का विस्तार - दस वर्ष से अधिक की परिपक्वता |
| 71 |
बैंपविवि .सं.निदेश.बीसी.136/13.03.00/2008-09 |
29 मई 2009 |
बैंक द्वारा गारंटी जारी करना |
| 72 |
मेल-बॉक्स स्पष्टीकरण (एमबीसी) |
19 मई 2011 |
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा सहकारी बैंकों के घटकों को बैंक गारंटी (बीजी) / साख पत्र (एलसी) जारी करना |
| 73 |
बैंपविवि .बीपी.बीसी.सं.98 / 21.04.132 / 2013-14 का पैरा 8.2 |
26 फरवरी 2014 |
अर्थव्यवस्था में विपत्तिकालीन आस्तियों को पुनर्जीवित करने की रूपरेखा - परियोजना ऋणों का पुनर्वित्त, एनपीए की बिक्री और अन्य विनियामकीय उपाय |
| 74 |
बैंविवि .बीपी.बीसी.सं.40/21.04.142/2015-16 |
24 सितंबर 2015 |
कारपोरेट बॉण्ड के लिए आंशिक ऋण संवर्धन |
| 75 |
बैंविवि .निदेश.बीसी.सं.70/13.03.00/2015-16 |
07 जनवरी 2016 |
बैंक के गैर-संघटक उधारकर्ताओं को गैर-निधि आधारित सुविधा देना |
| 76 |
बैंविवि .बीपी.बीसी.सं.5/21.04.142/2016-17 |
25 अगस्त 2016 |
कारपोरेट बॉण्ड के लिए आंशिक ऋण संवर्धन (पीसीई) |
| 77 |
बैंविवि .सं.बीपी.बीसी.70/21.04.142/2016-17 |
18 मई 2017 |
कारपोरेट बॉण्ड के लिए आंशिक ऋण संवर्धन |
| 78 |
बैंविवि .बीपी.बीसी.सं.7/21.04.142/2018-19 |
02 नवंबर 2018 |
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और आवास वित्त कंपनियों द्वारा जारी किए जाने वाले बॉन्ड के लिए आंशिक ऋण संवर्धन |
शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में निरस्त किए गए परिपत्रों की सूची
| क्र. सं |
परिपत्र संख्या |
जारी करने की तिथि |
विषय |
| 1 |
एसीडी.प्लान(आईएनडीसी)1571/एचबी.164/69-70 |
10 दिसंबर 1969 |
राज्य सहकारी बैंकों के गारंटी व्यवसाय के लिए दिशानिर्देश |
| 2 |
एसीडी.प्लान.आईएफ़एस550/एचबी.164-74/5 |
26 अगस्त 1974 |
गारंटी जारी करना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा अनुपालन किए जाने वाले दिशानिर्देश |
| 3 |
एसीडी.प्लान.(सीयूबी)140/यूबी.8-79/80 |
17 अक्तूबर 1979 |
बैंक गारंटी योजना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक |
| 4 |
एसीडी.प्लान.(सीयूबी).74/यूबी.8/80/81 |
20 अगस्त 1980 |
बैंक गारंटी योजना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक |
| 5 |
ग्राआऋवि.सं.सीआरआरबी.1507/विविध.5-82/83 |
31 मई 1983 |
राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों द्वारा एचयूडीसीओ /राज्य आवास बोर्डों और इसी तरह की अन्य संस्थाओं के पक्ष में दी गई गारंटी। |
| 6 |
ग्राआऋवि.सं.सीआरआरबी.3465/विविध.5-83/84 |
17 मई 1984 |
राज्य आवास बोर्डों और इसी प्रकार के निकायों को ऋण के संबंध में एचयूडीसीओ के पक्ष में राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली गारंटी |
| 7 |
पीसीबी.सं.पीओटी.1/यूबी.58-92/3 |
03 जुलाई 1992 |
साख पत्र के तहत भुगतान - दावों का तत्काल निपटान |
| 8 |
पीसीबी.सं.प्लान.42/09.27.00-93/94 |
16 दिसंबर 1993 |
बैंक गारंटी - निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने में देरी |
| 9 |
पीसीबी.प्लान.परि.एसयूबी.1/09.27.00/94-95 |
18 अक्तूबर 1994 |
गारंटी जारी करना - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा अनुपालन किए जाने वाले दिशानिर्देश |
| 10 |
पीसीबी.सं.आई एवं एल/पीसीबी/9/12.05.00/95-96 |
01 सितंबर 1995 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 11 |
पीसीबी.सं.प्लान.(पीसीबी)49/09.27.00/96-97 |
26 अप्रैल 1997 |
बैंक गारंटी के तहत भुगतान - मामलों का तत्काल निपटान |
| 12 |
पीसीबी.सं.प्लान.पीसीबी.परि.07/09.27.00/99-2000 |
21 सितंबर 1999 |
बैंक गारंटी |
| 13 |
पीसीबी.(पीसीबी)बीपीडी.परि.सं.29/13.05.000/2011-12 |
30 मार्च 2012 |
शहरी सहकारी बैंकों द्वारा बिलों की भुनाई - प्रतिबंधित साख पत्र |
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