आरबीआई/2025-26/59
विवि.एसटीआर.आरईसी.34/21.04.048/2025-26
जून 19, 2025
भारतीय रिज़र्व बैंक (परियोजना वित्त) निदेश, 2025
I. भूमिका
भारतीय रिज़र्व बैंक ने पिछले कुछ वर्षों में, दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु एक सिद्धांत-आधारित व्यवस्था स्थापित करने हेतु ठोस कदम उठाए हैं। 7 जून, 2019 को जारी दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु विवेकपूर्ण ढांचा, जिसे समय-समय पर अद्यतन किया जाता है, ('विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क') उधारकर्ता खातों में दबाव की शीघ्र पहचान और समाधान के लिए एक व्यापक फ्रेमवर्क प्रदान करता है। हालाँकि, वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ होने की तिथि (डीसीसीओ) में परिवर्तन के कारण कार्यान्वयनाधीन परियोजनाओं से संबंधित जोखिमों के पुनर्गठन को, अगली समीक्षा तक, विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क की परिधि से बाहर रखा गया था।
विनियामक मानदंडों की व्यापक समीक्षा और परियोजना ऋणों के वित्तपोषण के संबंध में बैंकों के अनुभव को ध्यान में रखते हुए, मौजूदा दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाने और परियोजना वित्तपोषण करने वाली सभी विनियमित संस्थाओं (आरई) के लिए उन्हें सुसंगत बनाने का निर्णय लिया गया है।
II. प्रारंभिक
ए. प्रस्तावना
1. यह निदेश, विनियमित संस्थाओं द्वारा अवसंरचना और गैर-अवसंरचना (वाणिज्यिक अचल संपत्ति और वाणिज्यिक अचल संपत्ति-रिहाइशी आवास सहित) क्षेत्रों में परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु एक समन्वित फ्रेमवर्क प्रदान करने हेतु जारी किए गए हैं। यह निदेश, विद्यमान निदेशों की समीक्षा और ऐसे वित्तपोषण में निहित जोखिमों के विश्लेषण की पृष्ठभूमि में, ऐसी परियोजनाओं के डीसीसीओ में परिवर्तन होने पर संशोधित विनियामक व्यवस्था भी निर्धारित करते हैं।
बी. प्रयोग की गई शक्तियाँ
2. बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35ए के साथ पठित अधिनियम की धारा 56; भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय IIIबी; राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 30ए के साथ पठित अधिनियम की धारा 32 और धारा 33 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए; भारतीय रिज़र्व बैंक (जिसे इसके बाद रिज़र्व बैंक कहा जाएगा) इस बात से संतुष्ट होकर कि ऐसा करना सार्वजनिक हित में आवश्यक और समीचीन है, एतद्द्वारा, इसके बाद निर्दिष्ट यह निदेश जारी करता है।
सी. संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ
3. इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (परियोजना वित्त) निदेश, 2025 कहा जाएगा।
डी. प्रभावी तिथि
4. यह निदेश 01 अक्तूबर, 2025 से प्रभावी होंगे।
ई. प्रयोज्यता
5. इन निदेशों के प्रावधान निम्नलिखित विनियमित संस्थाओं (आरई) के परियोजना वित्त एक्सपोजर पर लागू होंगे, जिन्हें संदर्भ के अनुसार आगे ऋणदाता कहा जाएगा:
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सभी वाणिज्यिक बैंक (लघु वित्त बैंकों सहित तथा भुगतान बैंक, स्थानीय क्षेत्र बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के अलावा)
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सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) (आवास वित्त कंपनियों सहित)
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सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
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अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (एआईएफआई)
6. जिन एनबीएफसी को भारतीय लेखा मानकों (इंडएएस) का अनुपालन करना आवश्यक है, वे 'मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी - स्केल आधारित विनियमन) निदेश, 2023' जिन्हें प्रावधानीकरण और अन्य आवश्यकताओं के संबंध में, समय-समय पर अद्यतीत किया गया है में निहित अनुदेशों द्वारा भी निदेशित होंगे।
7. यह निदेश उन परियोजनाओं पर लागू नहीं होंगे जहाँ प्रभावी तिथि तक वित्तीय समापन पूर्ण हो चुका है। ऐसी परियोजनाएँ परियोजना वित्त पर विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों द्वारा निदेशित होती रहेंगी, जिन्हें अन्यथा निरस्त माना जाएगा। हालाँकि, प्रभावी तिथि के बाद, ऐसी परियोजनाओं में किसी नई ऋण घटना का समाधान और/अथवा ऋण अनुबंध में भौतिक नियमों और शर्तों में परिवर्तन, इन निदेशों में निहित दिशानिर्देशों के अनुसार होंगे।
8. इन निदेशों में यथा विनिर्दिष्ट 'परियोजना वित्त' की परिभाषा को पूरा न करने वाले ऋणों में दबाव का समाधान, अथवा जहां परियोजनाएं प्रचालनात्मक चरण में हैं, ऐसे मामले विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क में निहित दिशानिर्देशों के द्वारा अथवा जहां विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क'लागू नहीं है वहां उधारदाताओं की किसी विशिष्ट श्रेणी पर लागू संगत अनुदेशों द्वारा निर्देशित होते रहेंगे।
एफ. परिभाषाएँ
9. इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो
(ए) "नियत तिथि" - रियायतग्राही और रियायत प्रदान करने वाले प्राधिकारी के बीच हुए रियायत समझौते में परिभाषित तिथि, जिस दिन रियायत समझौता उसमें उल्लिखित शर्तों के अनुसार लागू होता है उसे संदर्भित करता है (केवल सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत अवसंरचना परियोजनाओं के मामले में लागू)।
(बी) "वाणिज्यिक अचल संपत्ति (सीआरई)" - का अर्थ दिनांक 9 सितंबर, 2009 के परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.42/08.12.015/2009-10 जो 'वाणिज्यिक अचल संपत्ति (सीआरई) एक्सपोजर के रूप में एक्सपोजर के वर्गीकरण पर दिशानिर्देश' पर है और जिसे समय-समय पर अद्यतन किया गया है में उल्लिखित अर्थ के अनुसार होगा।
(सी) "वाणिज्यिक अचल संपत्ति-रिहाइशी आवास (सीआरई-आरएच)" - का अर्थ दिनांक 21 जून, 2013 के परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.104/08.12.015/2012-13 में दिया गया है, जो 'आवास क्षेत्र: सीआरई के अंतर्गत नया उप-क्षेत्र सीआरई (रिहाइशी आवास) और प्रावधानीकरण, जोखिम-भार और एलटीवी अनुपातों का युक्तिकरण' पर है, और जो समय-समय पर अद्यतीत है।
(डी) "ऋण घटना" - निम्नलिखित में से किसी भी घटना के घटित होने पर आरंभ हुई मानी जाएगी:
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किसी ऋणदाता के साथ चूक;
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कोई भी ऋणदाता परियोजना के मूल/विस्तारित डीसीसीओ, जैसा भी मामला हो, के विस्तार की आवश्यकता निर्धारित करने पर;
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मूल/विस्तारित डीसीसीओ की समाप्ति, जैसा भी मामला हो;
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किसी ऋणदाता(ओं) द्वारा अतिरिक्त ऋण के निवेश की आवश्यकता निर्धारित करने पर;
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परियोजना को विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क के अंतर्गत निर्धारित वित्तीय कठिनाई का सामना करना पड़ने पर।
स्पष्टीकरण: जिस ऋणदाता पर विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क लागू नहीं होता, उसे भी वित्तीय कठिनाई निर्धारित करने के उद्देश्य से उन्हीं सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाएगा।
(ई) "वाणिज्यिक परिचालन प्रारंभ करने की मूल तिथि (मूल डीसीसीओ)" - वित्तीय समापन के समय परिकल्पित तिथि, जिसके द्वारा परियोजना को वाणिज्यिक उपयोग में लाया जाना अपेक्षित है और रियायतग्राही/परियोजना विकासकर्ता/प्रवर्तक को पूर्णता प्रमाणपत्र/अनंतिम पूर्णता प्रमाणपत्र, अथवा इसके समकक्ष, जारी किया जाना अपेक्षित है।
बशर्ते कि सीआरई और सीआरई-आरएच परियोजनाओं के मामले में, मूल डीसीसीओ वह तिथि होगी जिस दिन सक्षम प्राधिकारी से अधिभोग प्रमाणपत्र अथवा इसके समकक्ष, प्राप्त किया जाना अपेक्षित है।
(एफ) "विस्तारित डीसीसीओ" - यदि मूल डीसीसीओ को संशोधित किया जाता है, तो संशोधित डीसीसीओ को विस्तारित डीसीसीओ कहा जाएगा।
(जी) "वास्तविक डीसीसीओ" - वह तिथि है जिस दिन परियोजना को वाणिज्यिक उपयोग में लाया जाता है और पूर्णता प्रमाण पत्र / अनंतिम पूर्णता प्रमाण पत्र / अधिभोग प्रमाण पत्र (सीआरई और सीआरई-आरएच परियोजनाओं के मामले में) अथवा इसके समकक्ष रियायतग्राही / परियोजना विकासकर्ता / प्रवर्तक को जारी किया जाता है।
(एच) "वित्तीय पूर्णता की तारीख" - वह तारीख है जिस दिन परियोजना की पूंजी विन्यास1, जिसमें इक्विटी,कर्ज़, अनुदान2 (यदि कोई हो) शामिल है, जो कुल परियोजना लागत का कम से कम 90% है, सभी हितधारकों पर वैध रूप से बाध्यकारी हो जाती है।
(आई) "चूक"- से आशय है कर्ज़ का भुगतान न करना (जैसाकि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी), 2016 में परिभाषित है) जब कर्ज़ का पूरा अथवा कोई भाग अथवा किस्त देय हो गई है और देनदार द्वारा भुगतान नहीं किया गया है।
(जे) "अवसंरचना क्षेत्र"- इसमें आर्थिक मामलों का विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर अद्यतन की गई अवसंरचना उप-क्षेत्रों की सुमेलित मास्टर सूची में शामिल उप-क्षेत्र शामिल होंगे।
(के) "निर्माण के दौरान ब्याज (आईडीसी)" – से आशय है ऋणदाता द्वारा प्रदान किए गए कर्ज़ पर अर्जित ब्याज और परियोजना के निर्माण चरण के दौरान पूंजीकृत ब्याज।
(एल) "परियोजना" – से आशय है पूंजीगत व्यय (जिसमें वर्तमान और भविष्य में निधियों का व्यय शामिल है) द्वारा मूर्त आस्तियों और/अथवा सुविधाओं के सृजन/विस्तार/उन्नयन हेतु किए गए उपक्रम, जिनसे भविष्य में नकदी प्रवाह लाभ की धारा प्रवाहित होने की प्रत्याशा की जाती है। परियोजनाओं में आमतौर पर निर्माण-पूर्व अवधि, अपरिवर्तनीयता और पर्याप्त पूंजीगत परिव्यय जैसी विशेषताएँ होती हैं।
(एम) "परियोजना वित्त" से आशय परियोजना के वित्तपोषण की विधि से है जिसमें वित्त पोषित परियोजना द्वारा उत्पन्न होने वाला राजस्व ऋण के लिए प्राथमिक प्रतिभूति और पुनर्भुगतान के स्रोत के रूप में भी कार्य करता है। परियोजना वित्तपोषण किसी प्रारंभिक पूंजी प्रतिष्ठापन (ग्रीनफील्ड) के निर्माण के वित्तपोषण, अथवा मौजूदा प्रतिष्ठापन(ब्राउनफील्ड) में सुधार/संवर्द्धन के वित्तपोषण के रूप में हो सकता है। इन निर्देशों के लिए, कोई एक्सपोज़र केवल तभी परियोजना वित्त एक्सपोज़र के रूप में योग्य होगा जब निम्नलिखित शर्तें पूरी हों:
(i) वित्तीय पूर्णता के समय परिकल्पित पुनर्भुगतान का प्रमुख स्रोत (अर्थात कम से कम 51%) उस परियोजना से उत्पन्न नकदी प्रवाह से होना चाहिए, जिसका वित्तपोषण किया जा रहा है।
(ii) सभी ऋणदाताओं का देनदार के साथ एक सामान्य करार होता है।
स्पष्टीकरण: एक सामान्य करार में प्रत्येक ऋणदाता के लिए अलग-अलग ऋण शर्तें3 हो सकती हैं, बशर्ते कि देनदार और परियोजना के सभी ऋणदाता इस पर सहमत हो गए हों।
(एन) "पुनर्रचना" - का वही आशय होगा जैसाकि समय-समय पर अद्यतन किए गए विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क' में दिया गया है।
(ओ) "समाधान योजना (आरपी)" - किसी परियोजना वित्त खाते में दबाव के समाधान के लिए एक पारस्परिक रूप से सहमत, विधि रूप से बाध्यकारी, व्यवहार्य और समयबद्ध योजना है। समाधान योजना में कोई भी कार्रवाई/योजना/पुनर्गठन शामिल होती है, जिसमें देनदार इकाई द्वारा सभी बकाया राशि का भुगतान करके खाते का नियमितीकरण, अन्य संस्थाओं/निवेशकों को एक्सपोज़र की बिक्री, स्वामित्व में परिवर्तन, डीसीसीओ का विस्तार और पुनर्गठन शामिल है, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं है।
(पी) "आपाती (स्टैंडबाय) ऋण सुविधा (एसबीसीएफ)" - परियोजना के निर्माण चरण के दौरान किसी भी लागत वृद्धि को वित्तपोषित करने के लिए वित्तीय पूर्णता के समय परियोजना के लिए स्वीकृत एक आकस्मिक ऋण व्यवस्था है।
10. अन्य सभी अभिव्यक्तियों का, जब तक कि यहां परिभाषित न किया गया हो, वही आशय होगा जो उन्हें 1 अप्रैल, 2025 के 'मास्टर परिपत्र - आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और अग्रिमों से संबंधित प्रावधान पर विवेकपूर्ण मानदंड', विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क, रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित शब्दावली अथवा वाणिज्यिक विशिष्ट में प्रयुक्त, जैसा भी मामला हो, के अंतर्गत निर्दिष्ट किया गया है।
III. सामान्य दिशा-निर्देश
जी. परियोजना के चरण
11. इन निर्देशों में निहित विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों के अनुप्रयोग के प्रयोजन हेतु, परियोजनाओं को सामान्यत: तीन चरणों में विभाजित किया जाएगा, अर्थात्:
(ए) डिजाइन चरण - यह पहला चरण है जो परियोजना की उत्पत्ति के साथ शुरू होता है और इसमें अन्य बातों के साथ-साथ डिजाइनिंग, योजना बनाना है, सभी लागू मंजूरी/अनुमोदन वित्तीय पूर्णता तक प्राप्त करना शामिल है।
(बी) निर्माण चरण - यह दूसरा चरण है जो वित्तीय पूर्णता के बाद शुरू होता है और वास्तविक डीसीसीओ से एक दिन पहले समाप्त होता है।
(सी) परिचालन चरण - यह अंतिम चरण है जो वास्तविक डीसीसीओ के दिन परियोजना द्वारा वाणिज्यिक संचालन शुरू करने के साथ शुरू होता है और परियोजना वित्त एक्सपोज़र के पूर्ण चुकौती के साथ समाप्त होता है।
एच. स्वीकृति से संबंधित विवेकपूर्ण शर्तें
12. ऋणदाता की ऋण नीतियों में परियोजना वित्त एक्सपोज़र की मंजूरी के लिए उपयुक्त खंड शामिल किए जाएंगे, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ इन निर्देशों के तहत प्रावधानों को भी ध्यान में रखा जाएगा।
13. सभी ऋणदाता द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के लिए, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि:
(ए) वित्तीय पूर्णता प्राप्त हो गई हो और मूल डीसीसीओ को स्पष्ट रूप से लिखा गया हो और धनराशि संवितरण से पूर्व उसका दस्तावेजीकरण किया गया हो।
(बी) परियोजना के पूर्ण होने के चरण के अनुसार परियोजना-विशिष्ट संवितरण अनुसूची ऋण करार में शामिल हो।
(सी) डीसीसीओ के बाद की चुकौती अनुसूची को प्रारंभिक नकदी प्रवाह को ध्यान में रखते हुए यथार्थवादी तरीके से डिज़ाइन किया गया हो।
बशर्ते कि मूल अथवा संशोधित चुकौती अवधि, जिसमें अधिस्थगन अवधि, यदि कोई हो, शामिल है, किसी परियोजना के उपयोगिता काल के 85% से अधिक नहीं होगी।
14. किसी दी गई परियोजना के लिए, मूल/विस्तारित/वास्तविक डीसीसीओ, जैसा भी मामला हो, परियोजना के सभी ऋणदाताओं के लिए समान होगा।
15. निर्माणाधीन परियोजनाओं में जहां ऋणदाताओं का कुल एक्सपोज़र ₹1,500 करोड़ तक है, किसी भी व्यक्तिगत ऋणदाता का एक्सपोज़र कुल एक्सपोज़र के 10% से कम नहीं होगा। उन परियोजनाओं के लिए जहां सभी ऋणदाताओं का कुल एक्सपोज़र ₹1,500 करोड़ से अधिक है, किसी व्यक्तिगत ऋणदाता के लिए एक्सपोज़र सीमा 5% अथवा ₹150 करोड़, जो भी अधिक हो, होगी।
बशर्ते कि, उपरोक्त न्यूनतम एक्सपोज़र आवश्यकताएँ वास्तविक डीसीसीओ के बाद लागू नहीं होंगी और ऋणदाता समय-समय पर अद्यतन किए गए ऋण एक्सपोज़र के हस्तांतरण पर मास्टर निदेशों में निहित दिशानिर्देशों के अनुपालन में, अन्य ऋणदाताओं से स्वतंत्र रूप से एक्सपोज़र प्राप्त कर सकते हैं अथवा उन्हें बेच सकते हैं। वास्तविक डीसीसीओ से पहले, ऋणदाता एक समूहन4, व्यवस्था के तहत अन्य ऋणदाताओं से एक्सपोज़र प्राप्त कर अथवा उन्हें बेच सकते हैं, बशर्ते कि व्यक्तिगत ऋणदाताओं का हिस्सा उपरोक्त सीमाओं का पालन करता हो।
16. ऋणदाता यह सुनिश्चित करे कि वित्तीय पूर्णता से पहले परियोजना के कार्यान्वयन/निर्माण हेतु सभी लागू अनुमोदन/मंजूरी प्राप्त कर ली गई है। ऐसी पूर्व-अपेक्षित अनुमोदनों/मंजूरी की एक सांकेतिक सूची में परियोजना पर लागू पर्यावरणीय मंजूरी, विधिक मंजूरी,विनियामक मंजूरी आदि शामिल हैं।
17. परियोजना पूर्णता के लिए कुछ प्रासंगिक लक्ष्यों की प्राप्ति पर निर्भर अनुमोदन/मंजूरी केवल तभी लागू माने जाएंगे जब ऐसे लक्ष्य प्राप्त हो जाएँ। उदाहरण के लिए, बॉयलर के संचालन हेतु सहमति केवल बॉयलर के निर्माण के बाद ही प्राप्त की जा सकती है। अत: वित्तीय पूर्णता के समय इसे एक अनिवार्य पूर्वापेक्षा नहीं माना जाएगा।
आई. संवितरण और निगरानी संबंधी विवेकपूर्ण शर्तें
18. ऋणदाता को निधि संवितरण से पूर्व सभी परियोजनाओं के लिए पर्याप्त भूमि/मार्ग की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी, जो निम्नलिखित न्यूनतम आवश्यकताओं के अधीन होगी:
(ए) पीपीपी मॉडल के तहत अवसंरचना ढांचा परियोजनाओं के लिए - 50%
(बी) अन्य सभी परियोजनाओं (गैर-पीपीपी अवसंरचना ढांचा, और सीआरई एवं सीआरई-आरएच सहित गैर-अवसंरचना ढांचा) के लिए - 75%
(सी) ट्रांसमिशन लाइन परियोजनाओं के लिए - जैसा कि ऋणदाता द्वारा तय किया गया हो
19. सरकारी निजी सहभागिता(पीपीपी) मॉडल के अंतर्गत अवसंरचना ढाँचा परियोजनाओं के मामले में, निधि का संवितरण परियोजना के लिए नियत तिथि अथवा उसके समतुल्य की घोषणा के बाद शुरू होगा। हालाँकि, ऐसे मामलों में जहाँ रियायत प्रदान करने वाले प्राधिकरण द्वारा नियत तिथि की घोषणा के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में गैर-निधि आधारित ऋण सुविधाओं को अनिवार्य किया जा सकता है, ऋणदाता गैर-निधि आधारित सुविधाओं पर मौजूदा विनियामक निर्देशों के अनुपालन में ऐसी ऋण सुविधाओं को स्वीकृत कर सकता है।
20. इसके अतिरिक्त, ऊपर पैरा 19 में उल्लिखित एक्सपोज़र के संबंध में, वित्तीय पूर्णता दस्तावेज़ में दर्ज मूल डीसीसीओ को ऋणदाता और देनदार के बीच एक पूरक करार द्वारा निधि के संवितरण से पहले रियायत प्रदान करने वाले प्राधिकारी द्वारा 'नियत तिथि' में किसी भी परिवर्तन को दर्शाने के लिए संशोधित किया जा सकता है, बशर्ते कि परियोजना की व्यवहार्यता का पुनर्मूल्यांकन किया जाए और उपयुक्त प्राधिकारियों से स्वीकृति प्राप्त की जाए। इस उद्देश्य के लिए, उन सभी परियोजनाओं हेतु एक तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता (टीईवी) अध्ययन आवश्यक होगा जहाँ सभी ऋणदाताओं का कुल एक्सपोज़र ₹100 करोड़ अथवा उससे अधिक है।
21. ऋणदाता द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि संवितरण, परियोजना के पूरा होने के चरणों जो वित्तीय समापन और शेष प्रयोज्य मंजूरी की प्राप्ति के भाग के रूप में सहमत है, के साथ-साथ इक्विटी निवेश (इन्फ्यूजन) और वित्त के अन्य स्रोतों में प्रगति के अनुपात में हो । ऋणदाता के स्वतंत्र इंजीनियर (एलआईई)/वास्तुकार द्वारा परियोजना पूर्ति के चरणों को प्रमाणित किया जाएगा।
22. दिनांक 01 अप्रैल 2025 को जारी मास्टर परिपत्र - आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और अग्रिमों से संबंधित प्रावधान पर विवेकपूर्ण मानदंड, जिसे समय-समय पर अद्यतन किया जाता है, अथवा विशिष्ट श्रेणी के उधारदाताओं पर लागू प्रासंगिक अनुदेशों के अनुसरण में वसूली के रिकॉर्ड के अनुसार, परियोजना वित्त खाते को वास्तविक डीसीसीओ से पहले किसी भी समय एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
IV. समाधान के लिए विवेकपूर्ण मानदंड
जे. दबाव का समाधान
23. ऋणदाता को परियोजना के निष्पादन तथा तनाव निर्माण पर निरंतर निगरानी रखनी होगी तथा उससे अपेक्षा की जाएगी कि वह समाधान योजना काफी पहले ही प्रारम्भ कर दे। निर्माण चरण के दौरान किसी भी ऋणदाता के साथ ऋण संबंधी घटना घटित होने पर, विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क5 के अनुसार सामूहिक समाधान की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाएगी। विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क5 में 'चूक' को परियोजना वित्त खातों के प्रयोजन के लिए 'ऋण घटना' के रूप में पढ़ा जाएगा, जब तक कि अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया हो।
24. ऐसी किसी भी ऋण घटना की रिपोर्ट ऋणदाता द्वारा निर्धारित साप्ताहिक रूप से केंद्रीय वृहद ऋण सूचना रिपोजिटरी (सीआरआईएलसी) को दी जाएगी, साथ ही, यथा प्रयोज्य अनुदेशों के अनुपालन में सीआरआईएलसी-मुख्य रिपोर्ट भी प्रेषित की जाएगी। किसी सहायता संघ/बहु-ऋण व्यवस्था में शामिल ऋणदाता को ऐसी ऋण घटना की सूचना सहायता संघ /बहु-ऋण व्यवस्था के अन्य सभी सदस्यों को भी देनी होगी। सीआरआईएलसी रिपोर्टिंग संबंधी निर्देश यथासमय जारी किए जाएँगे।
25. ऋणदाता को ऐसी ऋण घटना की तारीख से तीस दिनों के भीतर देनदार खाते की प्रथम दृष्टया समीक्षा करनी होगी ("समीक्षा अवधि")। इस समीक्षा अवधि के दौरान ऋणदाता(ओं) का आचरण(conduct), जिसमें अंतर-ऋणदाता करार (आईसीए) पर हस्ताक्षर करना, और यथा-आवश्यक समाधान योजना लागू करने का निर्णय शामिल है जो कि विवेकपूर्ण फ्रेमवर्क के प्रावधानों द्वारा निर्देशित होगा5, जब तक कि इन निदेशों में अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया हो।
के. मूल/विस्तारित डीसीसीओ के विस्तार से संबंधित समाधान योजनाएं
26. एक परियोजना वित्त खाता जो मानक के रूप में वर्गीकृत हो और इन निदेशों के अध्याय III में निर्दिष्ट सभी प्रासंगिक विवेकपूर्ण शर्तों को पूरा करता है, जहां मूल/विस्तारित डीसीसीओ के विस्तार को शामिल करने वाली एक समाधान योजना, जैसा भी मामला हो, कार्यान्वित की जाती है, को 'मानक' के रूप में वर्गीकृत करना जारी रहेगा, बशर्ते कि परिकल्पित समाधान योजना प्रारम्भ से ही निम्नलिखित निर्धारित शर्तों के अनुरूप हो।
(ए) अनुमत डीसीसीओ आस्थगन – मूल/विस्तारित डीसीसीओ, जैसा भी मामला हो, को पुनर्भुगतान अनुसूची में परिणामी बदलाव के साथ समान अथवा कम अवधि (संशोधित पुनर्भुगतान अनुसूची की आरंभ तिथि और समाप्ति तिथि सहित) के लिए निम्नलिखित समय सीमाओं के भीतर विस्तारित किया जा सकता है:
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अवसंरचना परियोजनाएं |
गैर-अवसंरचना परियोजनाएं (सीआरई और सीआरई-आरएच सहित6) |
मूल डीसीसीओ से डीसीसीओ के स्थगन की अनुमति दी गई |
3 वर्ष तक |
2 वर्ष तक |
(बी) लागत वृद्धि – ऋणदाता, समाधान योजना के भाग के रूप में, उपर्युक्त पैरा 26(ए) के अनुपालन में अनुमत डीसीसीओ आस्थगन से जुड़ी लागत वृद्धि का वित्तपोषण कर सकता है, और खाते को 'मानक' के रूप में वर्गीकृत कर सकता है, जैसा कि नीचे दिया गया है:
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आईडीसी के अतिरिक्त, मूल परियोजना लागत का अधिकतम 10% तक लागत वृद्धि।
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लागत वृद्धि का वित्तपोषण एसबीसीएफ के माध्यम से किया जाता है, जिसे वित्तीय समापन7 के समय ऋणदाता द्वारा विशेष रूप से स्वीकृत किया जाता है।
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अवसंरचना परियोजनाओं के लिए, ऐसे मामलों में जहां वित्तीय समापन के समय एसबीसीएफ को मंजूरी नहीं दी गई थी, अथवा मंजूरी दी गई थी लेकिन बाद में उसका नवीकरण नहीं किया गया था, ऐसे अतिरिक्त वित्तपोषण की कीमत पूर्व-स्वीकृत एसबीसीएफ पर लागू होने वाली कीमत से अधिक होगी। ऋणदाता द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ऋण-संविदा में प्रारंभ से ही ऐसे एसबीसीएफ पर प्रभारित किए जाने वाले अतिरिक्त जोखिम प्रीमियम का उल्लेख किया गया हो, जिसे ऐसी सुविधाओं की स्वीकृति के समय वास्तविक जोखिम मूल्यांकन के आधार पर संशोधित किया जा सकता है।
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डी/ई अनुपात, बाह्य क्रेडिट रेटिंग8 (यदि कोई हो) आदि जैसे वित्तीय पैरामीटर अपरिवर्तित रहते हैं अथवा ऐसी लागत वृद्धि के बाद ऋणदाता के पक्ष में बढ़ा दिए जाते हैं।
(सी) कार्यक्षेत्र और आकार में परिवर्तन – एक परियोजना वित्त खाता, जहां परियोजना के दायरे और आकार में वृद्धि के कारण परियोजना परिव्यय में वृद्धि के कारण डीसीसीओ विस्तार आवश्यक हो, को निम्नलिखित शर्तों के अनुपालन के अधीन, 'मानक' के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है:
(i) मूल परियोजना के संबंध में किसी भी लागत वृद्धि को छोड़कर परियोजना लागत में वृद्धि मूल परिव्यय का 25% या उससे अधिक है (जैसा भी मामला हो) (अनुबंध 1 में उदाहरण दिया गया है)।
(ii) ऋणदाता परियोजना के दायरे में वृद्धि को मंजूरी देने तथा नए डीसीसीओ को तय करने से पहले परियोजना की व्यवहार्यता का पुनः मूल्यांकन करता है।
(iii) पुनः रेटिंग पर (यदि पहले से रेटिंग हो चुकी है), नई बाह्य क्रेडिट रेटिंग पिछली बाह्य क्रेडिट रेटिंग से एक स्तर से अधिक नीचे नहीं होगी।
यदि परियोजना ऋण की व्याप्ति अथवा आकार में वृद्धि के समय मूल्यांकन नहीं किया गया था तो उन परियोजनाओं के मामले में, जहां सभी ऋणदाताओं का कुल एक्सपोजर ₹100 करोड़ के समकक्ष अथवा उससे अधिक है, व्याप्ति अथवा आकार में ऐसी वृद्धि पर इसे बाह्य रूप से निवेश ग्रेड का दर्जा दिया जाना चाहिए।
'कार्यक्षेत्र में परिवर्तन' के कारण मानक आस्ति वर्गीकरण का लाभ परियोजना के जीवनकाल के दौरान केवल एक बार ही दिया जाएगा।
27. इसके अलावा, उपर्युक्त सभी मामलों में समाधान योजना के सफल कार्यान्वयन हेतु, समीक्षा अवधि की समाप्ति से 180 दिनों के भीतर निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक होगा:
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ऋणदाता और देनदार के बीच आवश्यक करारों के निष्पादन/ सुरक्षा प्रभार के सृजन/ प्रतिभूतियों की पूर्णता सहित सभी आवश्यक दस्तावेज, कार्यान्वित की जा रही समाधान योजना के अनुरूप पूरे किए जाते हैं।
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नई पूंजी संरचना (ढांचा) और/अथवा वित्तपोषण करार में परिवर्तन ऋणदाता और देनदार की बहियों में विधिवत रूप से प्रतिबिंबित होते हैं।
28. यदि डीसीसीओ में परिवर्तन से संबंधित समाधान योजना को उपर्युक्त पैरा 26 और/ अथवा 27 के अनुसार सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं किया जाता है, तो खाते को तुरंत एनपीए में अवनत (डाउनग्रेड) कर दिया जाएगा।
एल. उन्नयन के लिए मानदंड
29. उपर्युक्त अनुच्छेद 26 के अनुपालन न करने के कारण एनपीए में अवनत किए गए परियोजना वित्त खाते का उन्नयन केवल तभी किया जा सकता है, जब खाता वास्तविक डीसीसीओ के बाद संतोषजनक9 रूप से से कार्य-निष्पादन करे।
30. उपर्युक्त पैरा 27 के अनुपालन न करने के कारण एनपीए में अवनत किए गए परियोजना वित्त खाते को समाधान योजना के सफल कार्यान्वयन पर उन्नयन किया जा सकता है, बशर्ते डीसीसीओ आस्थगन के लिए कोई और अनुरोध प्राप्त न हो।
एम. आय मान्यता
31. ऋणदाता ऋणदाता उन परियोजना वित्त एक्सपोजर के संबंध में उपार्जन आधार पर आय की पहचान कर सकता है जिन्हें 'मानक' के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एनपीए के लिए, आय का निर्धारण 1 अप्रैल, 2025 के मास्टर परिपत्र - अग्रिमों से संबंधित आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान पर विवेकपूर्ण मानदंड, जिन्हें समय-समय पर अद्यतन किया जाता है अथवा विशिष्ट श्रेणी के ऋणदाताओं पर लागू प्रासंगिक अनुदेशों में निहित मौजूदा अनुदेशों के अनुसार किया जाएगा।
एन. मानक आस्तियों के लिए प्रावधान
32. ऋणदाता, परियोजना वित्त एक्सपोजर के लिए पोर्टफोलियो के आधार पर वित्त पोषित बकाया के लिए निम्नलिखित दरों पर एक सामान्य प्रावधान बनाए रखेगा:
|
निर्माण चरण |
परिचालन चरण - ब्याज और मूलधन की चुकौती शुरू होने के बाद |
सीआरई |
1.25% |
1.00% |
सीआरई-आरएच |
1.00% |
0.75% |
अन्य सभी |
1.00% |
0.40% |
ओ. डीसीसीओ आस्थगित मानक आस्तियों के लिए प्रावधान
33. जिन खातों ने इन निदेशों के भाग K के अनुसार डीसीसीओ आस्थगन का लाभ लिया है और जिन खातों को 'मानक' के रूप में वर्गीकृत किया गया है, उनके लिए ऋणदाता आस्थगन की प्रत्येक तिमाही में उपरोक्त पैरा 32 में निर्दिष्ट लागू मानक आस्ति प्रावधान के अतिरिक्त, अवसंरचना परियोजना ऋणों के लिए 0.375% और गैर-अवसंरचना परियोजना ऋणों (सीआरई और सीआरई-आरएच सहित) के लिए 0.5625% का अतिरिक्त विशिष्ट प्रावधान रखेंगे (उदाहरण अनुबंध 2 में दिया गया है)। वाणिज्यिक परिचालन प्रारम्भ होने पर यह अतिरिक्त विशिष्ट प्रावधान वापस ले लिए जाएंगे।
पी. मौजूदा परियोजनाओं के लिए प्रावधान
34. पैरा 32 और 33 में अनुबद्ध प्रावधान उन मौजूदा परियोजनाओं पर लागू नहीं होंगे जो इन निदेशों के भाग ई के पैरा 7 में विनिर्दिष्ट हैं। प्रावधानीकरण के प्रयोजन से ऐसे परियोजना ऋण मौजूदा विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों द्वारा निर्देशित होते रहेंगे, जिन्हें अन्यथा निरस्त माना जाएगा।
35. प्रभावी होने की तारीख के पश्चात् ऐसी परियोजनाओं में किसी नई क्रेडिट घटना के समाधान और/या ऋण संविदा के भौतिक नियमों व शर्तों में परिवर्तन होने पर, पैरा 32 और 33 में अनुबद्द प्रावधान इन परियोजनाओं पर उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे कि इन्हें प्रभावी होने की तारीख के पश्चात मंजूर किया गया हो।
क्यू. अनर्जक आस्तियों के लिए प्रावधान
36. एनपीए के रूप में वर्गीकृत परियोजना ऋणों के लिए प्रावधान, समय-समय पर अद्यतन 01 अप्रैल 2025 के मास्टर परिपत्र - अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधान करने से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड में निहित मौजूदा अनुदेशों या ऋणदाताओं की विशिष्ट श्रेणी के लिए लागू प्रासंगिक अनुदेशों के अनुसार होंगे।
V. विविध
आर. डेटाबेस सृजन और रखरखाव
37. परियोजना-विशिष्ट डेटा, इलेक्ट्रॉनिक और आसानी से एक्सेस किए जाने वाले प्रारूप में, ऋणदाताओं द्वारा निरंतर आधार पर एकत्र और रखा जाएगा। प्रासंगिक मापदंडों की एक सूची, जो कम से कम परियोजना वित्त डाटाबेस का हिस्सा होगी, इन निदेशों के अनुबंध 3 में दी गई है। ऋणदाता को परियोजना वित्त एक्सपोजर के मापदंडों में होने वाले किसी भी बदलाव को यथाशीघ्र, लेकिन ऐसे बदलाव के 15 दिनों के भीतर, अद्यतन करना होगा। इस संबंध में आवश्यक व्यवस्था प्रभावी होने की तारीख से 3 महीने के भीतर लागू कर दी जाएगी।
एस. प्रकटीकरण
38. ऋणदाता को अपने वित्तीय विवरणों में, 'लेखा संबंधी टिप्पणियों' के अंतर्गत, कार्यान्वित की गई समाधान योजनाओं से संबंधित उचित प्रकटीकरण करना होगा। प्रकटीकरण का प्रारूप अनुबंध 4 में दिया गया है।
टी. अनुपालन न करने के लिए दंडात्मक परिणाम
39. इन निदेशों में निहित किसी भी प्रावधान का अनुपालन न करने पर, यथा लागू पर्यवेक्षी और प्रवर्तन कार्रवाई की जाएगी।
यू. निरसन प्रावधान
40. इन निदेशों के लागू होने के साथ ही अनुबंध 5 में निहित निदेश/दिशानिर्देश प्रभावी होने की तारीख से निरस्त हो जाएंगे।
41. उपर्युक्त पैरा 40 के अंतर्गत निरसन प्रावधानों के बावजूद, निरस्त अधिनियमों के तहत कोई भी कार्य जो किया गया हो या किए जाने का दावा किया गया हो या दिया गया कोई निदेश या की गई कोई कार्यवाही या लगाया गया कोई भी दंड या जुर्माना, जब तक वह इन निदेशों के प्रावधानों के साथ असंगत न हो, इन निदेशों के संगत प्रावधानों के तहत किया गया या लिया गया माना जाएगा।
अनुबंध 5
निरस्त किए गए अनुदेशों/दिशानिर्देशों की सूची
क्र. सं. |
परिपत्र संख्या |
जारी करने की तिथि |
विषय |
1 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.108/ 21.04.048/2001-2002 |
28.05.2002 |
आय की निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और समय की अधिकता वाली कार्यान्वयनाधीन परियोजनाओं के अग्रिम उपाय पर प्रावधान |
2 |
डीबीओडी. बीपी.बीसी.सं.74/21.04.048/2002-2003 |
27.02.2003 |
विलंब से पूरी होनेवाली अवसंरचना सुविधाओं वाली परियोजनाएं |
3 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.76/21.04.048/2006-07 |
12.04.2007 |
अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड - विलंब से पूरी होनेवाली परियोजनाएं |
4 |
डीबीओडी.बीपी.बीसी.82/21.04.048/2007-08 |
08.05.2008 |
अग्रिमों से संबंधित परिसंपत्ति वर्गीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वित की जा रही तथा विलंब से पूरी होनेवाली अवसंरचना सुविधाओं वाली परियोजनाएं |
5 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.84/21.04.048/2008-09 |
14.11.2008 |
कार्यान्वयन प्रक्रिया के अधीन संरचनात्मक परियोजनाओं के लिए आस्ति वर्गीकरण मानदंड |
6 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.85/21.04.048/2009-10 |
31.03.2010 |
अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वयन के अंतर्गत परियोजनाएं |
7 |
यूबीडी.बीपीडी.पीसीबी.परि.सं.59/09.14.000/ 2009-10 |
23.04.2010 |
यूसीबी - अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वयन के अंतर्गत परियोजनाएं |
8 |
डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं. 99/21.04.132/2012-13 |
30.05.2013 |
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा |
9 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.125/21.04.048/2013-14 |
26.06.2014 |
अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वयन के अंतर्गत परियोजनाएं |
10 |
डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.33/21.04.048/2014-15 |
14.08.2014 |
अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वयन के अंतर्गत परियोजनाएं |
11 |
डीबीआर.सं.बीपी.बीसी.84/21.04.048/2014-15 |
06.04.2015 |
अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वयन के अंतर्गत परियोजनाएं- स्वामित्व में परिवर्तन |
12 |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण (प्रश्न 3) |
20.04.2016 |
मौजूदा दीर्घकालिक परियोजना ऋणों की लचीली संरचना और कार्यान्वयन के तहत परियोजनाओं की लागत में वृद्धि का वित्तपोषण |
13 |
विवि.सं.बीपी.बीसी.33/21.04.048/2019-20 |
07.02.2020 |
अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानों पर विवेकपूर्ण मानदंड – कार्यान्वयन के अंतर्गत परियोजनाएं |
14 |
विवि.एफ़आईएन.एचएफ़सी.सीसी.सं.120/03.10.136/2020-21 [पैरा 8.3.2.बी का केवल पहला प्रावधान] |
17.02.2021 |
मास्टर निदेश - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी – आवास वित्त कंपनी (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2021 |
15 |
विवि.एफ़आईएन.आरईसी.सं.45/03.10.119/2023-24 [केवल अनुबंध III का अनुच्छेद 17, अनुच्छेद 3] |
19.10.2023 |
मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-स्केल आधारित विनियमन) निदेश, 2023 |
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