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गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियां

यद्यपि यह भूमिका हमारी गतिविधियों का एक ऐसा पहलू है, जिसके संबंध में स्‍पष्‍ट रूप से कहीं उल्‍लेख तो नहीं है, किंतु अति महत्‍वपूर्ण गतिविधियों की श्रेणी में इसकी गिनती की जाती है। इसके अंतर्गत अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों को ऋण उपलब्‍धता सुनिश्चित करना, देश की वित्‍तीय मूलभूत संरचना के निर्माण हेतु संस्‍थाओं की स्‍थापना करना, किफायती वित्‍तीय सेवाओं की सुलभता बढ़ाना तथा वित्‍तीय शिक्षण एवं साक्षरता को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।

अधिसूचनाएं


भारतीय रिज़र्व बैंक (सोने और चांदी के संपार्श्विक पर ऋण) निदेश, 2025 (29 सितंबर, 2025 को संशोधित किया गया)

आरबीआई/2025-26/47
विवि.सीआरई.आरईसी.26/21.01.023/2025-26

06 जून 2025
(29 सितंबर, 2025 को संशोधित किया गया)

भारतीय रिज़र्व बैंक (सोने और चांदी के संपार्श्विक पर ऋण) निदेश, 2025

विषयवस्तु
क. परिचय
ख. शक्तियों का प्रयोग और प्रारंभ
ग. दायरा
घ. परिभाषाएँ
ङ. पात्र संपार्श्विक पर सभी ऋणों के लिए लागू सामान्य शर्तें
प्रतिबंध और उच्चतम सीमा
सोने और चांदी के संपार्श्विक का मूल्यांकन और जांच
ऋण-मूल्य की तुलना में अनुपात (एलटीवी)
च. आचरण संबंधी पहलू
सोने और चांदी के संपार्श्विक के विश्लेषण और मूल्यांकन के लिए प्रक्रिया का मानकीकरण
दस्तावेज़ों और संचार (पत्राचार) का मानकीकरण
छ. संपार्श्विक प्रबंधन
संपार्श्विक का प्रबंधन और संग्रहण
चुकौती के बाद संपार्श्विक का निर्मोचन
नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता
प्रतिकर
अदावी सोना और चांदी संपार्श्विक
ज. अन्य अनुदेश
झ. प्रकटीकरण, निरसन और संशोधन
अनुबंध 1
अनुबंध 2

क. परिचय

1. रिज़र्व बैंक ने व्यापक समष्टि-विवेकपूर्ण चिंताओं तथा सोने की सट्टा और गैर-उत्पादक प्रकृति के कारण प्राथमिक सोना जैसे सोने के बुलियन पर ऋण देने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। हालाँकि, विनियमित संस्थाओं (आरई) को उधारकर्ताओं की अल्पकालिक वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सोने के गहनों, आभूषणों और सिक्कों की संपार्श्विक सुरक्षा पर ऋण देने की अनुमति दी गई है। इस प्रकार के ऋण हेतु विवेकपूर्ण और आचरण संबंधी विनियम भिन्न-भिन्न आरई के लिए अलग-अलग समय पर जारी किए गए हैं। यद्यपि, ऐसे ऋणों को विनियमित करने का मूल सिद्धांत विभिन्न आरई के लिए एक जैसा ही रहता है, तथापि आरई के अधिदेशों और जोखिम लेने की क्षमताओं में अंतर के कारण विनियमन कुछ पहलुओं में भिन्न होते हैं। मौजूदा विनियमन, अन्य बातों के साथ-साथ उधारकर्ताओं द्वारा उपयोग में नहीं लिए गए सोने के गहनों, आभूषणों अथवा सिक्कों का लाभ उठाकर अपनी संकुचित चलनिधि की स्थिति से निपटने का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से नियमित होते हैं, साथ ही वह ऋणदाताओं के लिए जोखिमों के समाधान में भी सहायक होते हैं। अतीत में इस प्रकार की चिंताए और उद्देश्य चांदी के संपार्श्विक पर ऋण देने संबंधी जारी किए गए कुछ विनियमन को मार्गदर्शित करते है।

2. अधिक सिद्धांत-आधारित और सामंजस्यपूर्ण विनियामक फ्रेमवर्क की ओर बढ़ने और विनियमित संस्थाओं में संभावित विवेकपूर्ण और आचरण संबंधी कमियों को दूर करने के एक भाग के रूप में, इस मामले में संशोधित अनुदेशों को सोना और चांदी संपार्श्विक पर ऋण देने के व्यापक निदेशों में समेकित किया गया है जो की सभी विनियमित संस्थाओं पर लागू होंगे। इन संशोधित निदेशों में विनियामक उद्देश्य हैं: (i) विभिन्न विनियमित संस्थाओं में लागू ऐसे ऋणों के लिए एक सामंजस्यपूर्ण विनियामक फ्रेमवर्क स्थापित करना; (ii) कुछ अपनाई जा रही ऋण प्रथाओं से संबंधित चिंताओं का समाधान करना और कुछ पहलुओं पर आवश्यक स्पष्टता प्रदान करना; और (iii) आचरण संबंधी पहलुओं को मजबूत करना।

ख. शक्तियों का प्रयोग और प्रारंभ

3. बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21, 35ए और 56; भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेए, 45एल और 45एम; और राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 30ए, 32 और 33 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए; भारतीय रिज़र्व बैंक (जिसे आगे रिज़र्व बैंक कहा जाएगा) इस बात से सहमत है कि ऐसा करना जनहित में तथा जमाकर्ताओं के हित में आवश्यक और समीचीन है, इसलिए इसके बाद निर्दिष्ट यह अनुदेश जारी करता है।

4. इन निदेशों द्वारा जारी अनुदेशों का यथासंभव शीघ्रता से परंतु 1 अप्रैल, 2026 के पहले अनुपालन किया जाए। विनियमित संस्था द्वारा निदेशों को अपनाने की तिथि से पहले स्वीकृत ऋण इन निदेशों के जारी होने से पहले लागू मौजूदा दिशा-निर्देशों द्वारा अधिशासित होते रहेंगे।

ग. दायरा

5. यह निदेश, जब तक अन्यथा निर्दिष्ट न हो, उपभोग अथवा आय सृजन (कृषि ऋण सहित) के उद्देश्य से नीचे उल्लिखित विनियमित संस्था के द्वारा दिए जाने वाले उन सभी ऋणों पर लागू होंगे, जहां पात्र सोना अथवा चांदी संपार्श्विक को संपार्श्विक सुरक्षा के रूप में स्वीकार किया जाता है।

  1. वाणिज्यिक बैंक सहित लघु वित्त बैंक, स्थानीय क्षेत्र बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा भुगतान बैंक को छोड़कर।

  2. प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (यूसीबी) और ग्रामीण सहकारी बैंक (आरसीबी), अर्थात राज्य सहकारी बैंक (एसटीसीबी) और केंद्रीय सहकारी बैंक (सीसीबी)।

  3. सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) सहित आवास वित्त कंपनियाँ (एचएफसी)।

घ. परिभाषाएँ

6. इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, यहाँ दिए गए शब्दों का अर्थ निम्नानुसार होगा:

  1. "बुलेट पुनर्भुगतान ऋण" का अर्थ है ऐसे ऋण जहाँ ऋण की परिपक्वता पर मूलधन और ब्याज दोनों का भुगतान किया जाना है।

  2. "संपार्श्विक जमानत" अथवा "संपार्श्विक" का अर्थ है उधारकर्ता की मौजूदा आस्ति जो ऋणदाता द्वारा उधारकर्ता को दी गई ऋण सुविधा का लाभ उठाने और उसे सुरक्षित करने के लिए ऋणदाता के पास गिरवी रखी गई है।

  3. "उपभोग ऋण" का अर्थ है कोई भी अनुमत ऋण जो नीचे उल्लिखित पैराग्राफ 6(vi) में परिभाषित आय सृजन ऋण की परिभाषा में उपयुक्त नहीं है।

  4. "पात्र संपार्श्विक" का अर्थ है सोने अथवा चांदी से बने गहने, आभूषण अथवा सिक्के का संपार्श्विक।

  5. किसी एक दिन में "मूल्य की तुलना में ऋण (एलटीवी) अनुपात" का अर्थ है उस दिन बकाया ऋण राशि का गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक के मूल्य से अनुपात। हालाँकि, बुलेट पुनर्भुगतान ऋणों के मामले में, एलटीवी गणना में परिपक्वता पर चुकाई जाने वाली कुल राशि को ध्यान में रखा जाएगा।

  6. “आय सृजन ऋण" का अर्थ है उत्पादक आर्थिक गतिविधियों के उद्देश्य से दिए गए ऋण, जैसे कि कृषि ऋण, व्यवसाय अथवा वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए ऋण, उत्पादक आस्तियों के निर्माण अथवा अधिग्रहण के लिए ऋण आदि।

  7. "गहने" का अर्थ उन वस्तुओं से है जिन्हें व्यक्तिगत अलंकरण के रूप में पहनने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

  8. "ऋणदाता" का अर्थ आरई से है जो पात्र संपार्श्विक पर ऋण प्रदान करता है अथवा प्रदान करने की मंशा रखता है

  9. "आभूषण" का अर्थ किसी भी चीज, सजावटी सामान अथवा वस्तुओं के अलंकरण के लिए उपयोग की जानेवाली मदों से हैं जो कि उपर्युक्त 6 (vii) के तहत परिभाषित आभूषण की परिभाषा के अंतर्गत शामिल नहीं हैं।

  10. “अपरिष्कृत सोना और अपरिष्कृत चांदी" का अर्थ आभूषण, गहने और सिक्कों के अलावा किसी भी रूप में सोना और चांदी।

  11. "टॉप-अप ऋण" का अर्थ है मौजूदा ऋण के लिए पहले से गिरवी रखी गई संपार्श्विक के आधार पर, मूल ऋण की अवधि के दौरान बकाया ऋण के अलावा स्वीकृत अतिरिक्त ऋण।

7. अन्य सभी अभिव्यक्तियों के, जब तक कि यहां परिभाषित न की जाएं, वही अर्थ होंगे जो बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत निर्दिष्ट हैं, अथवा उनके लिए कोई सांविधिक आशोधन अथवा पुन: अधिनियमन अथवा रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए अन्य प्रासंगिक विनियमों में अथवा जैसा भी मामला हो, वाणिज्यिक भाषा में प्रयुक्त किया गया हो।

ङ. पात्र संपार्श्विक पर सभी ऋणों के लिए लागू सामान्य शर्तें

8. मौजूदा निदेशों के अनुसार ऋणदाता की ऋण नीति (जिसे इसके बाद नीति कहा जाएगा) में, अन्य बातों के साथ-साथ, इन निदेशों में परिभाषित पात्र संपार्श्विक पर ऋणों के पोर्टफोलियो के लिए उपयुक्त एकल उधारकर्ता सीमाएं और समग्र सीमाएं; ऐसे ऋणों के लिए अनुमत अधिकतम एलटीवी अनुपात; एलटीवी अनुपात के उल्लंघन के मामले में की जाने वाली कार्रवाई; मूल्यांकन मानक तथा मानदंड; और सोने एवं चांदी की शुद्धता के मानक सम्मिलित होंगे। नीति में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण के तहत वर्गीकृत किए जाने वाले प्रस्तावित ऋणों हेतु प्राप्त और अनुरक्षित किए जाने वाले उपयुक्त दस्तावेज भी शामिल होंगे।

9. नीति के अंतर्गत तैयार की गई नीति/मानक परिचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) में जांच प्रक्रिया से संबंधित आचरण संबंधी पहलू भी शामिल होंगे; सोना और चांदी जांच करने वाले अथवा मूल्यांकनकर्ता को नियुक्त करने के लिए मानदंड/योग्यताएं; नीलामी प्रक्रिया जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ पात्र संपार्श्विक की नीलामी के लिए कारक घटना और उधारकर्ता को नीलामी नोटिस देने की समय-सीमा निर्दिष्ट की जाएगी; नीलामी पद्धति; नीलामी से पहले ऋण के निपटान के लिए उधारकर्ता(ओं)/ विधिक वारिस (सों) को दी जाने वाली नोटिस अवधि; नीलामकर्ताओं को सूचीबद्ध करना; गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक के खो जाने अथवा आंतरिक लेखापरीक्षा के दौरान या अन्यथा पात्र संपार्श्विक की मात्रा अथवा शुद्धता में किसी गिरावट अथवा विसंगति के मामले में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, जिसमें संपार्श्विक की वापसी अथवा नीलामी के समय भी शामिल है, और ऐसे मामलों में उधारकर्ता(ओं)/विधिक वारिस (सों) को उचित क्षतिपूर्ति दी जाएगी, साथ ही इसके प्रभावी होने की समय-सीमा आदि का भी उल्लेख किया जाएगा।

10. मौजूदा दिशा-निर्देश के अनुसार, ऋणदाता अपने ऋण जोखिम प्रबंधन फ्रेमवर्क के रूप में पात्र संपार्श्विक पर ऋण देने हेतु उपयुक्त दृष्टिकोण पर निर्णय ले सकता है, जो अन्य बातों के साथ-साथ, छोटे टिकट वाले ऋणों के लिए आनुपातिकता और पहुंच में आसानी के सिद्धांत के अनुरूप हो। हालाँकि, यदि पात्र संपार्श्विक पर कुल ऋण राशि1 2.5 लाख से अधिक है, तो उधारकर्ता की पुनर्भुगतान क्षमता का आकलन सहित विस्तृत ऋण मूल्यांकन किया जाएगा।

11. ऋणदाता, उधारकर्ता के औपचारिक अनुरोध पर मौजूदा ऋण का नवीनीकरण अथवा टॉप-अप ऋण स्वीकृत कर सकता है और यह पैराग्राफ 10 के अनुसार ऋण मूल्यांकन के अधीन है। इस प्रकार के नवीनीकरण अथवा टॉप-अप की अनुमति केवल अनुमत एलटीवी के भीतर दी जाएगी, और बशर्ते कि ऋण को मानक के रूप में वर्गीकृत किया गया हो। इसके अलावा, बुलेट पुनर्भुगतान ऋण का नवीनीकरण केवल अर्जित ब्याज, यदि कोई हो, के भुगतान के बाद ही दिया जाएगा। ऋणदाता यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे नवीनीकरण और टॉप-अप उनके कोर बैंकिंग प्रणाली अथवा ऋण प्रसंस्करण प्रणाली में स्पष्ट रूप से पहचाने जा सकें।

प्रतिबंध और उच्चतम सीमा

12. 2कोई भी उधारदाता किसी भी प्रकार का अग्रिम या ऋण नहीं देगा:

  1. अपरिष्कृत सोना, गहने, आभूषण या सिक्के सहित किसी भी रूप में सोने की खरीद के लिए या सोने द्वारा समर्थित वित्तीय आस्तियों जैसे, एक्सचेंज में खरीदे-बेचे गए फंड (ईटीएफ) की इकाइयां या म्यूचुअल फंड की यूनिट, की खरीद के लिए; और

  2. अपरिष्कृत सोने या चांदी या अपरिष्कृत सोने या चांदी द्वारा समर्थित वित्तीय आस्तियों के विरुद्ध।

बशर्ते कि कोई अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक या टियर 3 या 4 शहरी सहकारी बैंक उन उधारकर्ताओं को आवश्यकता-आधारित कार्यशील पूंजी वित्त प्रदान कर सकता है जो सोने या चांदी का उपयोग कच्चे माल के रूप में या अपने ऐसे विनिर्माण या औद्योगिक प्रसंस्करण गतिविधि में इनपुट के रूप में करते हैं, जिसके लिए ऐसा सोना या चांदी प्रतिभूति के रूप में भी स्वीकार किया जा सकता है। ऐसा वित्त प्रदान करने वाला बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि उधारकर्ता निवेश या सट्टेबाज़ी प्रयोजनों के लिए सोना न खरीदें या न रखें।

13. ऋणदाता को ऐसे मामलों में ऋण नहीं देना चाहिए, जहां संपार्श्विक का स्वामित्व संदिग्ध हो। सभी मामलों में उधारकर्ता से उपयुक्त दस्तावेज़ अथवा घोषणा प्राप्त की जानी चाहिए, जिससे यह ज्ञात हो कि उधारकर्ता पात्र संपार्श्विक का वास्तविक स्वामी है। एक ही उधारकर्ता को उसके पात्र संपार्श्विक पर अनेक अथवा बार-बार ऋण स्वीकृत करना, जो कि ऋणदाता द्वारा तय की जाने वाली सीमा से अधिक मूल्य के हो तो उसे धन-शोधन निवारक (एएमएल) फ्रेमवर्क के तहत लेनदेन निगरानी के रूप में ध्यानपूर्वक जांचा जाना चाहिए।

14. यह ऋणदाता को नहीं करना चाहिए:

  1. अपने उधारकर्ताओं द्वारा गिरवी रखे गए सोने अथवा चांदी को पुनः गिरवी रखकर ऋण प्राप्त करना।

  2. अन्य ऋणदाता, संस्थाओं अथवा व्यक्तियों को उनके उधारकर्ताओं द्वारा गिरवी रखे गए सोने अथवा चांदी को संपार्श्विक के रूप में स्वीकार कर ऋण प्रदान करना।

संदेह के समाधान हेतु स्पष्ट किया जाता है कि उपरोक्त प्रावधान किसी ऋणदाता को अंतर्निहित प्राप्य राशियों की प्रतिभूति पर किसी अन्य ऋणदाता को वित्तपोषित करने से नहीं रोकते हैं।

15. बुलेट पुनर्भुगतान ऋण की प्रकृति वाले उपभोग ऋणों की परिपक्वता अवधि 12 महीने तक सीमित होगी, जिसे पैरा 11 के अनुसार नवीकृत किया जा सकता है।

16. आभूषण और सिक्कों पर ऋण निम्नलिखित के अधीन होंगे:

  1. उधारकर्ता के सभी ऋणों के लिए गिरवी रखे गए आभूषणों का कुल वजन सोने के 1 किलोग्राम आभूषणों और चांदी के 10 किलोग्राम आभूषणों से अधिक नहीं होना चाहिए।

  2. उधारकर्ता के सभी ऋणों के लिए गिरवी रखे गए सिक्कों का कुल वजन सोने के सिक्कों के 50 ग्राम और चांदी के सिक्कों के 500 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।

सोने और चांदी के संपार्श्विक का मूल्यांकन और जांच

17. संपार्श्विक के रूप में स्वीकार किए जाने वाले सोने अथवा चांदी का मूल्यांकन उसकी वास्तविक शुद्धता (कैरेटेज) के अनुरूप संदर्भ कीमत के आधार पर किया जाएगा। इस प्रयोजन के लिए, (क) पिछले 30 दिनों में उस विशिष्ट शुद्धता के सोने अथवा चांदी के लिए औसत अंतिम कीमत, जैसा भी मामला हो, अथवा (ख) पिछले दिन उस विशिष्ट शुद्धता के सोने अथवा चांदी की अंतिम कीमत, जैसा भी मामला हो, इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड (आईबीजेए) अथवा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा विनियमित कमोडिटी एक्सचेंज द्वारा प्रकाशित किए गए कीमत में से जो भी कम हो, का उपयोग किया जाएगा। यदि विशिष्ट शुद्धता के लिए कीमत की जानकारी तत्काल उपलब्ध नहीं है, तो ऋणदाता निकटतम उपलब्ध शुद्धता के लिए प्राप्त करने योग्य प्रकाशित कीमत का उपयोग किया जाएगा और मूल्यांकन करने के लिए संपार्श्विक के वजन को इसकी वास्तविक शुद्धता के आधार पर आनुपातिक रूप से समायोजित किया जाएगा।

18. मूल्यांकन के प्रयोजन के लिए, पात्र संपार्श्विक में निहित सोने अथवा चांदी के केवल यथार्थ मूल्य की गणना की जाएगी और बहुमूल्य जवाहरात अथवा रत्न जैसे कोई अन्य लागत तत्व इसमें नहीं जोड़े जाएंगे।

ऋण-मूल्य की तुलना में अनुपात (एलटीवी)

19. पात्र संपार्श्विक पर उपभोग ऋणों का अधिकतम एलटीवी अनुपात, नीचे सारणी में दिये गए एलटीवी अनुपात से अधिक नहीं होगा:

प्रति उधारकर्ता कुल उपभोग ऋण राशि3 अधिकतम एलटीवी अनुपात
2.5 लाख 85 प्रतिशत
> 2.5 लाख और ≤ 5 लाख 80 प्रतिशत
> 5 लाख 75 प्रतिशत

20. निर्धारित एलटीवी अनुपात को ऋण की पूरी अवधि के दौरान निरंतर बनाए रखा जाएगा।

च. आचरण संबंधी पहलू

सोने और चांदी के संपार्श्विक के विश्लेषण और मूल्यांकन के लिए प्रक्रिया का मानकीकरण

21. ऋणदाता को यह सुनिश्चित करना होगा कि सोना और चांदी की शुद्धता, उसका वजन (सकल और निवल) आदि की जांच के लिए एक मानकीकृत प्रक्रिया अपनाई गई है। यह प्रक्रिया सभी विश्लेषण प्रक्रियाओं के लिए, बिना किसी विचलन के, उसकी सभी शाखाओं में समान रूप से अपनाई जाएगी।

22. ऋणदाता को अपनी वेबसाइट पर पात्र संपार्श्विक के सोने और चांदी की मात्रा के निवल भार के निर्धारण के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली और एलटीवी अनुपात के निर्धारण के लिए पात्र संपार्श्विक के सोने और चांदी की मात्रा के मूल्यांकन के लिए प्रयुक्त मूल्य प्रदर्शित करना होगा।

23. ऋणदाता को ऋण स्वीकृति के समय संपार्श्विक की जांच करते समय उधारकर्ता(ओं) की उपस्थिति सुनिश्चित करनी होगी। जांच प्रक्रिया के भाग के रूप में पत्थर के वजन,मजबूती आदि से संबंधित कटौती उधारकर्ता(ओं) को समझाई जाएगी और जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्र में विवरण शामिल किया जाएगा।4.

24. गिरवी रखने के बाद, सोना अथवा चांदी के संपार्श्विक के नुकसान और आंतरिक लेखापरीक्षा के दौरान अथवा संपार्श्विक की वापसी अथवा नीलामी के समय उपलब्ध मात्रा अथवा शुद्धता में किसी भी गिरावट अथवा विसंगति से संबंधित मामलों को दर्ज किया जाएगा और उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को तत्काल सूचित किया जाएगा। नीति अथवा एसओपी के अनुसार प्रतिपूर्ति अथवा मुआवजा देने की प्रक्रिया भी उधारकर्ता री(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को बताई जाएगी।

दस्तावेज़ों और संचार (पत्राचार) का मानकीकरण

25. ऋणदाता के सभी शाखाओं दस्तावेज़ीकरण को मानकीकृत किया जाएगा।

26. ऋण करार में प्रतिभूति के रूप में लिए गए पात्र संपार्श्विक का विवरण, ऐसे संपार्श्विक5, का मूल्य, नीलामी प्रक्रिया का विवरण और पात्र संपार्श्विक की नीलामी के लिए परिस्थितियां, नीलामी आयोजित किए जाने से पहले ऋण की चुकौती अथवा निपटान के लिए उधारकर्ता को दी जाने वाली नोटिस अवधि, ऋण की पूर्ण चुकौती अथवा निपटान के बाद गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक को छोड़ने की समय-सीमा, गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक की नीलामी से अधिशेष, यदि कोई हो, की वापसी और अन्य आवश्यक विवरण शामिल होंगे। उधारकर्ता द्वारा देय सभी लागू शुल्क, जिनमें विश्लेषण, नीलामी आदि से संबंधित शुल्क भी शामिल हैं, ऋण करार और मुख्य तथ्य विवरण (केएफएस) में स्पष्ट रूप से शामिल किए जाएंगे।

27. पात्र संपार्श्विक की स्वीकृति के समय, ऋणदाता को संपार्श्विक के परीक्षण के संबंध में अपने पत्रशीर्ष पर दो प्रतियों में एक प्रमाणपत्र अथवा ई-प्रमाणपत्र तैयार करना होगा तथा उसमें शुद्धता (कैरेट के अनुसार); गिरवी रखे पात्र संपार्श्विक का सकल भार; उसमें सोने अथवा चांदी की मात्रा का शुद्ध भार तथा पत्थरों, लाख, मिश्रधातु, तार, बन्धन आदि के भार से संबंधित कटौतियां, यदि कोई हों; संपार्श्विक में देखी गई क्षति, टूट-फूट अथवा दोष, यदि कोई हों; संपार्श्विक की छवि; तथा स्वीकृति के समय प्राप्त संपार्श्विक का मूल्य बताना होगा6। प्रमाण-पत्र अथवा ई-प्रमाण-पत्र की एक प्रति ऋण दस्तावेजों के भाग के रूप में रखी जाएगी तथा दूसरी प्रति ऋणकर्ता को उनकी पावती के तहत दी जाएगी।

28. उधारकर्ता के साथ सभी पत्राचार, विशेष रूप से ऋण की शर्तें अथवा अन्य महत्वपूर्ण संचार जो उधारकर्ता अथवा ऋणदाता के हित को प्रभावित करते हैं, क्षेत्र की भाषा में अथवा उधारकर्ता द्वारा चुनी गई भाषा में होंगे। अशिक्षित उधारकर्ता को महत्वपूर्ण नियम और शर्तें एक गवाह की उपस्थिति में समझाई जाएंगी, जो ऋणदाता का कर्मचारी नहीं होगा।

छ. संपार्श्विक प्रबंधन

संपार्श्विक का प्रबंधन और संग्रहण

29. ऋणदाता को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी प्रत्येक शाखा में जहां सोना अथवा चांदी के जमानत पर ऋण स्वीकृत किया जाता है, आवश्यक बुनियादी ढांचे और सुविधाएं उपलब्ध हों तथा उचित सुरक्षा उपाय किए जाएं।

30. ऋणदाता को यह सुनिश्चित करना होगा कि सोना और/अथवा चांदी का प्रबंधन केवल उसकी शाखाओं में और केवल उसके कर्मचारियों द्वारा ही किया जाए।

31. ऋणदाता संपार्श्विक को केवल अपनी उन शाखाओं में ही संग्रहित करेगा, जो उसके कर्मचारियों द्वारा ही संचालित हो तथा जहां सोना और चांदी के संग्रहण के लिए सुरक्षित जमा तिजोरियां हों। सामान्यतः, ऐसे ऋण उन शाखाओं द्वारा नहीं दिए जाएंगे जिनके पास गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक के संग्रहण के लिए उचित सुरक्षित सुविधा नहीं है।

32. गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक को एक शाखा से दूसरी शाखा में केवल नीचे अनुच्छेद 41 के अंतर्गत अनुमति के अनुसार अथवा शाखा(ओं) के स्थानांतरण अथवा बंद होने अथवा असाधारण कारणों के मामले में ऋणदाता द्वारा अपनी नीति के अनुसार निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत स्थानांतरित किया जा सकता है।

33. ऋणदाता को पात्र संपार्श्विक के संग्रहण के लिए प्रणालियों की पर्याप्तता की समय-समय पर समीक्षा करनी होगी, संबंधित कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना होगा तथा सभी प्रक्रियाओं की आंतरिक लेखा-परीक्षा करनी होगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इनका सख्ती से पालन किया जा रहा है।

34. आंतरिक लेखापरीक्षा के भाग के रूप में, ऋणदाता को अपने पास गिरवी रखे गए सोने और चांदी के संपार्श्विक का समय-समय पर आकस्मिक सत्यापन करना होगा तथा उसका रिकार्ड रखना होगा। ऋण करार में एक खंड शामिल किया जाएगा, जिसके अंतर्गत ऋणकर्ता(ओं) की सहमति प्राप्त की जाएगी, ताकि ऋण की अवधि के दौरान उनकी अनुपस्थिति में भी गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक की जांच सहित आकस्मिक सत्यापन किया जा सके। ऋण स्वीकृत करते समय उधारकर्ता को इस पहलू के बारे में विशेष रूप से सूचित किया जाएगा।

चुकौती के बाद संपार्श्विक का निर्मोचन

35. ऋणदाता, ऋणकर्ता(ओं)/विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को सुरक्षा के रूप में रखे गए पात्र संपार्श्विक का उसी दिन निर्मोचन या वापस कर देगा, लेकिन किसी भी मामले में, ऋण की पूरी चुकौती अथवा निपटान के बाद अधिकतम सात कार्य दिवसों की अवधि से अधिक नहीं होगी।

36. उधारकर्ता(ओं)/विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक को जारी करते समय, उधारकर्ताओं की संतुष्टि के लिए प्रमाण पत्र में दिए गए विवरण के अनुसार संपार्श्विक की सत्यता का सत्यापन किया जाएगा7

नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता

37. ऋणदाता को नीलामी प्रक्रिया शुरू करने से पहले ऋण बकाया राशि चुकाने अथवा निपटान के लिए उपलब्ध संचार माध्यमों के माध्यम से उधारकर्ता(ओं)/विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को पर्याप्त सूचना देनी होगी। दोनों ही स्थितियों में सूचना की एक प्रति और उसकी पावती रिकॉर्ड में रखी जाएगी। यदि ऋणदाता सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद और जनसूचना जारी करने के बाद भी उधारकर्ता(ओं)/विधिक उत्तराधिकारी(ओं) का पता लगाने में असमर्थ है, तो वह नीलामी के साथ आगे बढ़ सकता है, बशर्ते कि सार्वजनिक नोटिस की तारीख से एक महीने की अवधि बीत चुकी हो।

38. ऋणदाता को एक पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया लागू करनी होगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, कम से कम दो समाचार पत्रों, एक क्षेत्रीय भाषा में तथा दूसरा राष्ट्रीय दैनिक, में विज्ञापन जारी करके जनता के समक्ष नीलामी की घोषणा करना शामिल होगा।

39. गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक की नीलामी ऋणदाता द्वारा केवल अपने उस कर्मचारी के माध्यम से की जाएगी, जिसके पास आवश्यक अनुभव और/या प्रशिक्षण हो, या ऋणदाता द्वारा अपनी नीति के अनुसार पैनल में शामिल नीलामीकर्ता के माध्यम से की जाएगी। ऐसे मामलों में जहां नीलामी ऋणदाता द्वारा अपने कर्मचारियों के माध्यम से की जाती है, वहां आवश्यक सुरक्षा उपाय जैसे कि समय-समय पर क्षेत्रीय/नियंत्रण अधिकारियों द्वारा आकस्मिक दौरा, आंतरिक लेखापरीक्षा के अंतर्गत कवरेज आदि किए जाने चाहिए।

40. ऋणदाता को नीलामी के समय सोने और चांदी के संपार्श्विक के लिए आरक्षित मूल्य घोषित करना होगा, जो उसके वर्तमान मूल्य8 के 90 प्रतिशत से कम नहीं होगा:

बशर्ते कि यदि नीलामी दो बार विफल हो जाती है, तो उसके वर्तमान मूल्य के 85 प्रतिशत से कम आरक्षित मूल्य नहीं अपनाया जाएगा।

41. पहली नीलामी उसी जिले में भौतिक रूप से की जाएगी जिसमें ऋणदात्री शाखा स्थित है। हालाँकि, पहली नीलामी विफल होने की स्थिति में, ऋणदाता किसी निकटवर्ती जिले में या ऑनलाइन नीलामी कर सकता है।

42. नीतिगत रूप से, ऋणदाता या उसके संबंधित पक्ष नीलामी में भाग नहीं लेंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हितों का कोई संभावित टकराव न हो।

43. नीलामी के बाद, ऋणदाता को उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को नीलामी में प्राप्त मूल्य और समायोजित बकाया राशि का पूरा विवरण अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना होगा। सोने या चांदी के संपार्श्विक की नीलामी से प्राप्त अधिशेष राशि, यदि कोई हो, को पूर्ण नीलामी आगम की प्राप्ति की तारीख से अधिकतम सात कार्य दिवसों के भीतर उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को वापस कर दिया जाएगा। ऋणदाता ऋण करार की शर्तों के अनुसार कमी, यदि कोई हो, को वसूल सकता है।

प्रतिकर

44. ऋण की अवधि के दौरान ऋणदाता द्वारा गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचने की स्थिति में, मरम्मत की लागत ऋणदाता द्वारा वहन की जाएगी।

45. गिरवी रखे गए पात्र संपार्श्विक के खो जाने और/या आंतरिक लेखापरीक्षा के दौरान अथवा संपार्श्विक की नीलामी अथवा वापसी के समय उसकी मात्रा या शुद्धता में पाई गई गिरावट या विसंगति से होने वाले किसी भी हानि के मामले में, ऋणदाता उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को उचित रूप से मुआवजा देंगे।

46. उधारकर्ता द्वारा ऋण की पूर्ण चुकौती या निपटान के बाद गिरवी रखी गई संपार्श्विक को वापस करने हुए विलंब के मामले में, जहां विलंब ऋणदाता के कारण हुआ है, ऋणदाता उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को उपर्युक्त पैराग्राफ 35 में निर्धारित समय सीमा से अधिक विलंब के प्रत्येक दिन के लिए 5,000 की दर से मुआवजा देगा। यदि विलंब ऋणदाता के कारण नहीं हुआ है, तो उन्हें उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को ऐसे विलंब के कारणों से अवगत कराना होगा। इसके अलावा, जहां उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) ऋण की पूरी चुकौती या निपटान के बाद गिरवी रखी गई पात्र संपार्श्विक को वापस करने के लिए ऋणदाता से संपर्क नहीं करते हैं, तो ऋणदाता उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) को पत्र, ईमेल या एसएमएस, यदि ईमेल और मोबाइल नंबर ऋणदाता के पास पंजीकृत हैं, के माध्यम से समय-समय पर अनुस्मारक भेजेगा।

47. इन निदेशों के अंतर्गत प्रदान किया गया प्रतिकर किसी भी लागू कानून के अनुसार किसी अन्य प्रतिकर को प्राप्त करने के उधारकर्ता के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगा।

अदावी सोना और चांदी संपार्श्विक

48. ऋणदाता के पास गिरवी रखा गया सोना या चांदी संपार्श्विक, ऋण की पूर्ण चुकौती या निपटान की तारीख से दो वर्ष से अधिक समय तक उनके पास रहने पर उसे दावा रहित माना जाएगा। ऋणदाता को ऐसे अदावी सोने और चांदी संपार्श्विक के संबंध में उधारकर्ता(ओं)/ विधिक उत्तराधिकारी(ओं) के ठौर-ठिकानों का पता लगाने के लिए समय-समय पर विशेष अभियान चलाना होगा।

49. अदावी सोने और चांदी संपार्श्विक पर रिपोर्ट, समीक्षा के लिए अर्ध-वार्षिक अंतराल पर ग्राहक सेवा समिति या बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

ज. अन्य अनुदेश

50. ऋणदाता को सोना या चांदी संपार्श्विक पर ऋण को बढ़ावा देने के अवास्तविक दावों वाले भ्रामक विज्ञापन जारी करने से बचना चाहिए।

51. ऋणदाता को यह सुनिश्चित करना होगा कि पात्र संपार्श्विक पर ऋण की सोर्सिंग और/या वसूली के लिए सभी व्यवस्थाएं आउटसोर्सिंग और वसूली प्रथाओं पर लागू दिशानिर्देशों के अनुरूप हों।

52. आम तौर पर ऋणदाता उधारकर्ता के बैंक खातों में ऋण संवितरित करेगा। सभी ऋणदाता समय-समय पर यथा संशोधित मास्टर निदेश - अपने ग्राहक को जानें (केवाईसी) निदेश 2016 का अनुपालन करेंगे। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 269 एसएस और 269 टी के प्रावधानों और संबंधित नियमों का अनुपालन किया जाएगा, जैसा लागू हो।

53. बैंक अंतरण के मामले में, ऋणदाता यह सुनिश्चित करेगा कि:

  1. ऋण का संवितरण किसी तीसरे पक्ष के खाते में न करके उधारकर्ता के खाते में किया गया है9; और

  2. ऋण शोधन, चुकौती आदि को उधारकर्ता द्वारा किसी तीसरे पक्ष के पूल खाते या पास-थ्रू खाते के बिना सीधे ऋणदाता के बैंक खाते में किया गया है।

54. एकल उधारकर्ता या संबंधित उधारकर्ताओं के समूह को एक साथ कई ऋण देने से दुरुपयोग और धोखाधड़ी की संभावना हो सकती है। फलस्वरूप, ऐसी प्रथाओं की सख्त आंतरिक लेखा परीक्षा और पर्यवेक्षी जांच होनी चाहिए।

झ. प्रकटीकरण, निरसन और संशोधन

55. ऋणदाता को अपनी लेखा संबंधी टिप्पणियों में, अपने कुल ऋणों में से, आय सृजन और उपभोग दोनों प्रयोजनों के लिए, सोना और चांदी संपार्श्विक के लिए अलग-अलग, पात्र संपार्श्विक पर दिए गए ऋणों की राशि और प्रतिशत का प्रकटीकरण अनुबंध 1 में निर्धारित प्रारूप के अनुसार करना होगा।

56. अनुबंध 2 में उल्लिखित परिपत्र इन निदेशों के प्रभावी होने की तारीख से निरस्त माने जाएंगे।


अनुबंध 2

इन निदेशों के जारी होने के साथ निरस्त किए गए परिपत्रों की सूची

क्र. सं. परिपत्र सं. दिनांक विषय
1 डीबीओडी.सं.आईएनएस.642/सी.124(पी)-64 20 जनवरी 1964 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
2 डीबीओडी.सं.एनएटी.बीसी.87/सी.453-72 7 अक्तूबर 1972 स्वर्ण आभूषणों के बदले दिए गए ऋणों का वर्गीकरण
3 डीबीओडी.सं.एलईजी.बीसी.74/सी.124(पी)-78 1 जून 1978 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
4 डीबीओडी.सं.एलईजी.बीसी.95/सी.124(पी)-78 22 जुलाई 1978 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
5 डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.20/सी.516-80 8 फरवरी 1980 चांदी के आभूषणों के बदले अग्रिम
6 डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.130/सी.464(एम)-81 15 अक्तूबर 1981 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
7 डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.99/सी.469(डबल्यू)-86 20 सितंबर 1986 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
8 डीबीओडी.सं.बीसी.146/21.01.023/93 4 अगस्त 1993 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
9 डीबीओडी.सं.बीसी.138/21.01.023/94 22 नवंबर 1994 चिकित्सा व्यय और अप्रत्याशित देयताओं को पूरा करने के उद्देश्य से स्वर्ण के आभूषणों और आभूषणों के विरुद्ध अग्रिम राशि
10 डीबीओडी.सं.आईबीडी.बीसी.663/23.67.001/2005-06 02 नवंबर 2005 स्वर्ण के आभूषणों और आभूषणों के बदले अग्रिम राशि
11 आरपीसीडी.केंका.सं.आरआरबी.बीसी.64/03.05.34/2005-06 27 फरवरी 2006 आरआरबी - स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
12 यूबीडी.पीसीबी.परि.सं.34/13.05.000/05-06 2 मार्च 2006 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
13 आरपीसीडी.केंका.आरएफ़.बीसी.सं.67 /07.40.06/2005-06 9 मार्च 2006 स्वर्ण आभूषणों और जवाहरात के बदले अग्रिम
14 यूबीडी.पीसीबी.परि.सं.22/13.05.000/07-08 26 नवंबर 2007 स्‍वर्ण ऋण की चुकौती
15 यूबीडी.पीसीबी.परि.सं.24/13.05.001/08-09 10 नवंबर 2008 स्वर्ण/चांदी आभूषणों की जमानत पर ऋण
16 आरपीसीडी.केंका.आरएफ़.बीसी.सं.60/07.37.02/2009-10 05 मार्च 2010 स्‍वर्ण ऋण की चुकौती
17 आरपीसीडी.केंका.आरआरबी.बीसी.सं.22 /03.05.34 /2010-11 22 सितंबर 2010 स्‍वर्ण ऋण की चुकौती
1317क डीबीओडी.सं.निदेश.बीसी.57/13.03.00/2012-13 19 नवंबर 2012 सोने की खरीद के लिए बैंक वित्त
17ख. आरपीसीडी.केंका.बीसी. 50/03.05.33/2012-13 5 दिसंबर 2012 सोने की खरीद के लिए बैंक वित्त
17ग. यूबीडी.बीपीडी.(पीसीबी) परि सं.36/13.05.001/ 2012-13 6 फरवरी 2013 सोने की खरीद के लिए बैंक वित्त
17घ. आरपीसीडी.आरसीबी.बीसी.सं.64/07.51.014/2012-13 7 फरवरी 2013 सोने की खरीद के लिए बैंक वित्त
18 डीबीओडी. सं. निदेश. बीसी. 96/13.03.00/2012-13 27 मई 2013 स्वर्ण की जमानत पर ऋण
19 आरपीसीडी.केंका.आरसीबी.बीसी.सं.77 /07.51.014/2012-13 6 जून 2013 स्वर्ण की जमानत पर ऋण
20 आरपीसीडी.आरआरबी.बीसी.सं.79/03.05.33/2012-13 25 जून 2013 आरआरबी - स्‍वर्ण की जमानत पर ऋण
21 डीबीओडी.सं.बीपी.79/21.04.048/2013-14 30 दिसंबर 2013 कृषि को छोड़कर अन्‍य प्रकार के अंतिम उपयोग के लिए स्‍वर्ण आभूषण और जवाहरात की प्रतिभूति पर ऋण
22 डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.86/21.01.023/2013-14 20 जनवरी 2014 स्‍वर्ण आभूषण की जमानत पर ऋण
23 यूबीडी.केंका.बीपीडी.पीसीबी.परि.सं.60/13.05.001/2013-14 9 मई 2014 स्वर्ण/चांदी आभूषणों की जमानत पर ऋण
24 आरपीसीडी.आरआरबी.आरसीबी.बीसी.सं.08/03.05.33/2014-15 1 जुलाई 2014 स्‍वर्ण आभूषणों पर ऋण
25 डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.27/21.04.048/2014-15 22 जुलाई 2014 कृषि को छोड़कर अन्‍य प्रकार के अंतिम उपयोग के लिए स्‍वर्ण आभूषण और जवाहरात की प्रतिभूति पर ऋण
26 यूबीडी.केंका.बीपीडी.(पीसीबी).परि.सं.25/13.05.001/2014-15 30 अक्तूबर 2014 स्वर्ण ऋण – एकमुश्त भुगतान - शहरी सहकारी बैंक
27 डीसीबीआर.केंका.बीपीडी(आरसीबी).परि.सं.11/13.05.001/2014-15 8 जनवरी 2015 स्‍वर्ण ऋण–बुलेट चुकौती
28 डीसीबीआर.बीपीडी. (पीसीबी/आरसीबी).परि.सं.3/13.05.001/2015-16 15 अक्तूबर 2015 स्‍वर्ण आभूषणों की गिरवी पर अग्रिम
29 डीबीआर.आरआरबी.बीसी.सं.53/31.01.001/2016-17 16 फरवरी 2017 स्‍वर्ण ऋण की चुकौती
30 विवि.सं.बीपी.बीसी/6/21.04.048/2020-21 6 अगस्त 2020 गैर-कृषि उपयोगों के लिए सोने के गहने और आभूषणों की गिरवी पर ऋण
31 विवि.सीआरई.आरईसी.42/07.10.002/2023-24 6 अक्तूबर 2023 स्वर्ण ऋण - एकमुश्त भुगतान - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (यूसीबी)

1 एकबारगी पुनर्भुगतान ऋण के मामले में, ऋण राशि परिपक्वता पर देय कुल राशि होगी।

2 29 सितंबर, 2025 को DOR.CRE.REC.52/21.01.023/2025-26 द्वारा संशोधित

3 बुलेट पुनर्भुगतान ऋण के मामले में, ऋण राशि परिपक्वता पर देय कुल राशि होगी।

4 जैसा कि इन निदेशों के पैराग्राफ 27 के अंतर्गत अपेक्षित है।

5 इन निदेशों के पैराग्राफ 17 और 18 के अनुसार गणना की जाएगी।

6 इन निदेशों के पैराग्राफ 17 और 18 के अनुसार गणना की गई.

7 जैसा कि इन निदेशों के पैराग्राफ 27 के अंतर्गत अपेक्षित है।

8 इन निदेशों के पैराग्राफ 17 और 18 के अनुसार गणना की जाएगी।

9 सांविधिक या विनियामकीय अधिदेश (आरबीआई या किसी अन्य विनियामक के) के अंतर्गत विशेष रूप से कवर किए गए संवितरण, सह-उधार लेनदेन के लिए उधारदाताओं के बीच धन का प्रवाह और विशिष्ट अंतिम उपयोग के लिए संवितरण को छोड़कर, बशर्ते ऋण सीधे अंतिम लाभार्थी के बैंक खाते में संवितरित किया जाए।

13 दिनांक 29 सितंबर, 2025 को DOR.CRE.REC.52/21.01.023/2025-26 द्वारा सम्मिलित किया गया।

2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
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